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भृगुनाथ
१३४०
भेदकातिशयोक्ति भृगुनाथ-संज्ञा, पु. यौ० (0) भृगुपति, भंवना-स० कि० दे० (हि. भिगाना) परशुरामजी । “जो हम निर्हि विप्र वदि, भिगोना । सत्य सुनहु भृगुनाथ"-- रामा० ।
भेउ, भेव*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० भेद) भृगुनायक-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) परशुराम। भेद, रहस्य । भृगुपति-संज्ञा, पु० यौ० पं.) परशुराम । भेक-संज्ञा, पु० (सं०) मेंढक । “ कबहूँ भेक
"भृगुपति परशु दिखावहु मोहीं'--रामा । न जानहीं. अमल कमल की बास।" भृगुमुख्य -- संज्ञा, पु. यौ० (सं.) भृगुवर, भैय--संज्ञा, पु० दे० ( सं० वेप ) रूप, वेष । परशुराम, भृगुथे।
भेखज* -- संज्ञा, पु. द० ( मं० भंपन) भृगुरेखा, भृगुलता--- संज्ञः, स्वी० यौ० "ग्रह, भेखज, जल, पवन, पट. पाय सुयोग (सं०) भृगुमुनि के पद प्रहार का विष्णु कुयोग'"--रामा० । भगवान की छाती पर चिह | "हिये भेजना---स० कि० दे. (सं० वजन ) किसी विराजति भृगुलता, त्यों बैजंती माल--- व्यक्ति या वस्तु को कहीं से कहीं ग्वाना
करना. पठाना, पठवाना । द्वि० रूप-भेजाना भृगुसंहिता-संज्ञा, पु. यो० (सं०) भृगुमुनि प्रे० रूप भेजवाना। कृत एक प्रसिद्ध ज्योतिष-ग्रंथ ।
भेजा--संज्ञा, पु. (दे०) मगज़, दिमाग, भृत--संज्ञा, पु० (सं०) दास, संवक । वि० . मस्तिष्क, खोपड़ी के भीतर का गृदा सा. (सं०) पूरित, भरा हुआ. पालापोषा हुआ, भ, अ० क्रि० ( हि० भेजना ) पटाया। ( यौगिक में ) जैसे---पररात।
भंड भेडी---संज्ञा, सी० द० (सं० भष) भृति-संज्ञा, स्त्री. (सं.) चाकरी, नौकरी,
गाडर बकरी जाति का एक छोटा चौपाया । मज़दूरी. तनख्वाह, वेतन, दाम, भरना,
मुहा० --- भेड़िया धसान --- फल को मूल्य, पालना, पोषना।।
बिना सोचे-समझे दूसरे का अनुकरण या भृत्य-संज्ञा, पु० (सं०) नौका । स्त्री० भृत्या।
अनुसरण करना। भृश -- क्रि० वि० (सं०) अधिक, बहुत ।। भंगा-वि० (दे०) टेढ़ी या तिरछी आँख
भेडहा-- संज्ञा, पु० (१०) भेड़िया । वाला, ऐंचाताना. ढेरा (ग्रा.)!
'भेडा-ज्ञा, पु. (हि. भंड़ ) भेड़ का नर, भंट-- संज्ञा, स्त्रो० (हि. नंटना ) मिलाप,
मेढ़ा, मेष । स्त्री० भेड़ी । वि० (दे०) भंगा। मेल, मिलन, मुलाकात, दर्शन, उपहार,
भेड़िया --- संज्ञा, पु० ६० ( हि० भेड़ ) कुत्ता नज़र या नज़राना । " तामां कबहु भई होइ
जैसा म्यार जाति का एक मांसाहारी बनैला भेटा।" कीन्ह प्रणाम भेट धरि भागे"- जंतु, भेड़हा, जनाउर, जड़ाउर (ग्रा० । रामा०।
भेद-संज्ञा, पु० (सं०) छेदने या भेदने की भेंटना -स० कि० (हि. भेट ) भिलना, क्रिया, शत्रु-पक्ष के लोगों को फोड़कर अपनी थालिंगन करना, मुलाकात करना, गले थोर मिलाना या उनमें फूट करा देना, लगाना । स० रूप-भेंटाना. भिंटाना, प्रे० विभेद, रहस्य, मर्म, तात्पर्य, अंतर, प्रकार । द्वि० रुप भेटवाना । “भेटेउ लखन ललकि 'भेद हमार लेन मठ श्रावा'"-रामा० । लघुभाई"-रामा।
भेदक-वि० (सं०) भेदने या छेदने वाला में:--सज्ञा, स्त्री० (दे०) भेटी । * संज्ञा, स्त्री. रेचक, दस्तावर (वैट)। (दे०) बाधा। मुहा०-मंड मारना- भेदकातिशयोक्ति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) किसी कार्य की सिद्धि में बाधा डालना। एक अर्थालंकार, जिसमें और औरै शब्दों के
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