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भूतभावन १३३७
__ भूमि भूतभावन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिवजी, भून*-संज्ञा, पु. दे. (सं० भ्रूण ) गर्भ।
विष्णु । " भगवान भूत भावनः"-- भाग०। भूनना-२० क्रि० दे० ( सं० भर्जन ) कोई भूभाषा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) प्राचीन वस्तु, पकाना, गरम बालू डाल, आग पर पैशाची भाषा, प्रेतों की बोलो, प्राचीन रख या गर्म घी आदि में डालकर कुछ भाषा।
वस्तु पकाना, तलना, अति कष्ट देना, भूनयज्ञ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पंचयज्ञों में | मूंजना । द्वि० रूप-भुनाना, प्रे० रूपसे एक, भूत वलि, वलिवैश्व ।
भुनवाना। भूतराज---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शिवजी। भुनाई - संज्ञा, स्त्री. ( हि. भूनना ) भनने भूनत-- संज्ञा, पु० यौ० सं०) पृथ्वी का ऊपरी का भाव या मज़दूरी, भैजवाई, भैजाई ।
तल, धरातल, संसार, दुनिया, पाताल। भुनाना-द्वि० कि० (हि० भूनना) भुजाना, भूत-वाधा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भूतों प्राग पर रखवा, गर्म बालू डलवा या गर्म के आक्रमण से उत्पन्न वाधा।
घी-तेल आदि में छोड़वा कर पकवाना, बड़े भूतांकुश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कश्यप सिक्के को छोटे सिक्कों में बदलवाना, तोड़ाना। ऋषि, गावजुदान (औष०)।
संज्ञा, स्त्री० भुनवाई। भूतात्मा-संज्ञा, पु० यौ० (सं० भूतात्मन्) भूप-भूपति--संज्ञा, पु० (सं०) राजा । “सुनह शरीर, जीव या जीवात्मा, परमेश्वर, शिवजी। भरत, भूपति बड़ भागी"-रामा ।। भूति-संज्ञा, स्त्री० (०) राज्यश्री, ऐश्वर्य, भूपाल-संज्ञा, पु० (सं०) राजा, एक नगर, वैभव, धन, संपत्ति, राख, भस्म, वृद्धि, एक ताल । लो०-" तालतो भूपाल ताल उत्पत्ति, अणिमादि पाठ सिद्धियाँ, और हैं तलैयाँ"। अधिकता । " गति मति कीरति भूति भूपाली-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक रागिनी बड़ाई"-रामा० ।
(संगी०)। भूतिनि-भूतिनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भूत) भूभल-संज्ञा, स्त्री० (सं० भू+ भुर्ज या अनु०) प्रेतिनी, शाकिनी, डाकिनी, पिशाचिनी। गर्म रेत, गर्म धूलि या राख । ततूरी भृत-योनि को प्राप्त स्त्री। वि० दुष्ट स्त्री। (ग्रान्ती०) भूभुर (ग्रा०)। " पाँव पखारि हौं भूतृण --संज्ञा, पु० (सं०) रूसा, रूस । भूभुल डाहे"- कवि० । भूनेश---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिवजी 'कृपा भूभुरि, भूभुरी-संज्ञा, पु० दे० (सं० भूभल) करें भूतेश'।
गर्म धूलि या रेत भुलभुल (ग्रा०)। भूतेश्वर--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) महादेवजी, भूभुज, भूभृत-संज्ञा, पु. (सं०) राना। 'भूयास भूतेश्वर पाश्ववर्ती रघु० । भूमंडल--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पृथ्वी का भूतोन्माद-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) भूत या गोला। प्रेत के कारण होने वाला उन्माद (वैद्य०)। भूमि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) भू , पृथ्वी, महि, भू-दान-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) भूमि का धरा, अवनि, जमीन, श्राधार, क्षेत्र, दान ।
स्थान, प्रान्त. देश, प्रदेश, जड़ या बुनिभूदेव-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्राह्मण । याद, योगी का क्रम से प्राप्त होने वाली भूधर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पर्वत, पहाड़। दशायें । योग०)। मुहा०-भूमि होना
"सिंधु तीर एक सुन्दर भूधर"--रामा० ।। ( पर आना )-पृथ्वी पर गिर पड़ना । भूधराकार-वि० यौ० (सं०) पर्वताकार ' और निदद्ध नामक चित्त की पाँच अवस्था "माय भूधराकार शरीरा"-रामा । (वेदा०)। भा० श० को०-१६८
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