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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भाग्यवंत, भाग्यवान 1 मिलना । भाग्य जागना - धनी या सुखी होना । यौ० - भाग्यग्राही - हिस्सेदार | यौ० भाग्य भरोसा - धीरता, भाग्याधीन । भाग्य-स्थान- कुंडली में १०वाँ घर या खाना (ज्यो०)। O. १३२३ भाग्यवंत, भाग्यवान - वि० (सं० भाग्यवत् ) धनी, भाग्यशाली । भाग्यहीन - वि० यौ० (सं०) कंगाल, अभागा । भाग्याधीन -- वि० यौ० (सं०) दैवी - विधान के अधीन । माचक संज्ञा, पु० (सं०) क्रांतिवृत्त । भाजक - वि० (सं०) विभाग करने या बाँटने वाला, किसी राशि में भाग देने का अंक (गणि०), विभाजक | भाजन - संज्ञा, पु० (सं० ) पात्र, योग्य, आधार, बरतन । 'भूरि भाग्य भाजन भयसि " - रामा० । 46 भाजना - अ० क्रि० (दे०) भागना, भगना । माजा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) तरकारी, साग, माँड़ पीच । भाज्य - (सं०) वह पदार्थ जो बाँटा जावे, जिस श्रंक में भाजक से भाग दिया जाय (गणि० ) । वि०- विभाग करने योग्य | भानमती भाड़ झोंकना (चूल्हा बुकाना) - तुच्छ या योग्य कार्य करना | भाड़ में झोंकना ( डालना) नष्ट करना, जाने देना, फेंकना । भाड़ा - संज्ञा, पु० दे० ( सं० भाट ) किराया | भारा (दे० ) । मुहा० - भाड़े का टट्टूअस्थायी, क्षणिक, निकम्मा । भाग - संज्ञा, पु० (सं०) हास्य रस- पूर्ण दृश्यकाव्य या एक एकांकी रूपक ( नाट्य० ) बहाना, मिस, व्याज । भात - संज्ञा, पु० दे० ( सं० भक्त ) पानी में उबाला या पकाया, चावल, विवाह की एक रीति जिसमें कन्या वाला समधी को भात खिलाता है | संज्ञा, पु० (सं० ) प्रकाश, प्रभात, सबेरा । भाट -संज्ञा, पु० दे० (सं० भट्ट) चारण, राजाओं का यशोगान करने वाले, बंदी सूत, tata ब्राह्मणों की एक जाति, चाटुकार। स्त्री० भारिन । " चले भाट हिय वर्ष न थोरा"रामा० । संज्ञा स्त्री० (दे०) भद्वैती, भटाँय । भाटा - संज्ञा, पु० (दे० ) समुद्र के पानी के चढ़ाव का उतार पानी का उतार होना । विनो० - ज्वार ! | भाट्यौ | संज्ञा, पु० दे० ( हि० भाट ) भटई (दे०) कीर्ति - कीर्त्तन, भाट का कार्य्यं । भाठी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० भट्ठी ) भट्टी । करि मन-मंदिर में भावना की माठी घरो "" -रसाल । भाड़ - संज्ञा, पु० दे० (सं० भ्रष्ट ) भड़भूतों की अनाज भूनने की भट्ठी । मुहा० 16 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir > भाति - संज्ञा, स्त्री० (सं०) कांति, श्राभा शोभा । भाथा - संज्ञा, पु० दे० (सं० भस्त्रा, पा० भस्था) तूणीर, तरकश, बड़ी भाथी या धौंकनी । भाथी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० भस्त्री० ) भट्टी की आग सुलगाने की धौंकनी । भादों - संज्ञा, पु० दे० ( सं० भाद्र प्रा० भद्दो ) भाद्रपद, सावन के बाद धौर कार के प्रथम का एक महीना, भादौं (दे०) । भाद्र-भाद्रपद - संज्ञा, पु० (सं० ) भादों । भाद्रपदा - संज्ञा, स्त्रो० (सं०) एक नक्षत्रसमूह इसके दो भाग हैं - १ -पूर्व भाद्रपद, २- उत्तर भाद्रपद | भान - संज्ञा, पु० (सं०) चमक, रोशनी, प्रकाश, कांति, दीप्ति, श्राभास, ज्ञान, प्रतीति । भानजा -- संज्ञा, पु० दे० ( सं० भगिनी + जः ) भाग्नेय, बहिन का पुत्र, मैंने, भानैज ( ग्रा० ) । स्त्री० भानजी । भानना । - स० क्रि० दे० ( सं० भंजन ) काटना, तोड़ना, भंग या नष्ट करना, दूर करना, मिटाना । स० क्रि० ( हि० भान ) समझना । सब की शक्ति शंभुधनु भानी " 66 - रामा० । भानमती - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भानुमती ) जादूगरनी । यौ० मुहा० - भानमती का For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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