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भाईदूज
भाग्य भाईदूज-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि० भाई + एकदम एक साथ भागना । वि०-भागने दूज ) कार्तिक शुक्ल की यमद्वितीया, भैया- वाला, भगोड़ा (दे०)। दूज, भइयादुइज ( ग्रा०)।
भागत्याग--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) भाग भाईबंद-संज्ञा, पु० यौ० ( हि • भाई-बधु) । छोड़ना, जहदजहल्लक्षणा । कुटुम्ब या वंश के लोग, बंधु बांधव, मित्र | भागना--अ० कि० दे० (सं० भाज) दौड़कर लोग । संज्ञा, स्त्री० भाईबंदी।
चलना चला जाना, पलायन करना, हट भाई-विरादर-संज्ञा, स्त्री. यौ० (हि.) जाना, पीछा छुड़ाना, किसी काम या बात कुटुम्ब और जाति के लोग । संज्ञा, स्त्री० से बचना या हटना । मुहा०-सिर पर भाईबिरादरी।
पैर रखकर भागना-बड़े वेग से भागना। भाउ, भाऊ-संज्ञा, पु० दे० (सं० भाव ) भागधेय-- संज्ञा, पु. (सं०) भाग्य, राजा का स्वभाव, भाव, स्नेह, विचार, प्रेम, भावना, कर । “तद् भागधेय परम पशूनाम् " अवस्था या दशा, अभिप्राय प्रयोजन, महिमा,
-भत। सत्ता, स्नेह, वृत्ति, स्वरूप, महत्व, चित्त
भागनेय --- संज्ञा, पु० (सं०) भानजा, भैने, वृत्ति । संज्ञा, पु. (दे०) भव (सं०) जन्म,
भानेज (ग्रा०)। उत्पत्ति । "जाकर रहा जहाँ जस भाऊ'- भागल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लब्धि ।
भागवंता-वि० दे० (सं० भाग्यवान् ) रामा०। भाएँ*1-क्रि० वि० दे० (सं० भाव ) समझ
भाग्यवान् , विस्मती, तकदीरी, भाग्यशाली। में, बुद्धि के अनुसार। "ज्योतिष झूठ हमारे
भागवत-सज्ञा, पु० (सं०) व्यास कृत १८ भाएँ'-रामा०।
पुराणों में से एक पुराण जिसमें श्रीकृष्ण
लीला १२ स्कंधों, ३१२ अध्यायों और भाकर-संज्ञा, पु. (सं.) भास्कर. सूर्य ।
१८००० श्लोकों में वर्णित है इसे वेदान्त भाकसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भखी) भट्ठी। भाख*-संज्ञा, पु० दे० (सं० भाषण )
का तिलक मानते हैं, देवी भागवत पुराण, भाषण, बातचीत।
परमेश्वर का दाप, १३ मात्राओं का एक
छंद । वि.--भागवत संबंधी। भाखना-स० क्रि० दे० ( सं० भाषण )
भागिनेय- संज्ञा, पु० (सं०) भानजा, बहिन कहना, कथन करना । 'पहिले पापु न
का लड़का, भैने (ग्रा०) । स्त्री० भागिनेयी। भाख"-वृं।
भागी-संज्ञा, पु. (सं० भागिन् । अधिकारी, भाखा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भाषा )
हकदार, हिस्सेदार, भाग्यवान् (यौगिक में) बोली, बातचीत । " भाखा भनित मोरि
जैसे-बड़भागी । “अहो धन्य लछिमन मति भोरी"-रामा० ।
बड़भागी"-रामा। भाग- संज्ञा, पु. (सं०) खंड, अंश, हिस्सा, भागीरथ- संज्ञा, पु० दे० (सं० भगीरथ ) पार्श्व ओर । संज्ञा, स्त्री. (सं० भाग्य ) भगीरथ राजा। किस्मत, नसीब, तकदीर, माथा, भाल, भागीरथी-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) गंगा नदी। सौभाग्य का कल्पित स्थान, सबेरा, प्रभात, भाग्य -- संज्ञा, पु. (स०) मनुष्य के कार्यों किसी राशि को कई अंशों या हिस्सों में को पूर्व ही से निश्चित करने वाला अवश्यंबाँटने की क्रिया (गणि०, बाँटना। भावी दैवी विधान. न पीव, तकदीर, किस्मत, भागड़- सज्ञा, स्त्री० दे० (दि. भागना) विधि लेख, भाग (दे०)। वि.-हिस्सा करने भगदड़, बहुत से लोगों का घबरा कर योग्य । मुहा०-भाग्य खुलना-सुख
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