________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मानवी १३२४
भार पिटारा-विचित्र और मनोरंजक वस्तुओं भारा- -वि० दे० (हि० भा+भरना) की राशि. विचित्र कुतूहलकारी और मनो- लाल । रंजक बातों का समूह ।
भाभी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० भाई ) भौजाई, भानवा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भानवीया) भउजी (ग्रा.), एक बुरी देवी (ग्रा० गाली)। भानुजा, यमुना, जमुना नदी।
संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भावो) होतव्यता। भाना*-अ० कि० दे० ( सं० भान =ज्ञान) __ " भाभी-बस सीता मन डोला"-रामा० । ज्ञात या मालूम होना, जान पडना, अच्छा मुहा०-भाभी पाना-बुरी दशा या या भला लगना. पसद पाना, शोभा देना। रोग होना, (ग्रा० गाली)। स० क्रि० दे० (सं० भा - प्रकाश ) चमकाना भाम-संज्ञा, पु. ( सं० ) एक वर्णिक छंद, भानु-संज्ञा, पु. (सं०) राजा, सूर्य, विष्णु, . (पिं०) । सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भामा) स्त्री। किरण, रश्मि । “जगत्यपर्याप्त सहस्र भामा - संज्ञा, स्त्री० ( सं०) स्त्री. वामा। भानुना "-मात्र।
भानिनि, भामिनी-- संज्ञा, स्त्री. (सं०) भानुज-संज्ञा, पु० (सं०) यम, शनिश्चर, स्त्री, पत्नी । " भामिनि मन मानहु जनि कर्ण. मनु । स्त्री० भनुजा ।
ऊना"--रामा० । “ज्यों पुरुष बिनु भामिनी, भानुजा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) यमुना। ज्यों चन्द्र बिनु है यामिनी'-मन्ना० । भानुननय-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) यम, भामिनी-विलास-सज्ञा, पु० यौ० ( सं०) शनि, मनु, कर्ण।
पंडितराज जगन्नाथ-कृत एक काव्य ग्रंथ । भानुतनया-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) यमुना। भाया-संज्ञा, पु० दे० ( हि० भाई ) भाई। भानुतनूजा-भानुतनुजा-सज्ञा, स्त्री० यौ० --संज्ञा, पु० दे० (सं० भाव ) विगर, (सं० भानुतनुजा ) यमुना ।
भाव, मन की वृत्ति, परिमाण, भाव, दर. ढंग, भानुमत्-वि० (सं०) प्रकाशमान् । संज्ञा, भांति, प्रेम, विचार, लेखे । " ज्योतिष मूठ पु. सूर्य।
हमारे भाये"-रामा। भानुमती-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) राजा भोज भायप-संज्ञा, पु. (दे०) भाइप, भाईचारा ।
की कन्या जो इन्द्रजाल की बड़ी ज्ञाता थी। भाया -मा. भू० स० क्रि० (हि. भाना) भानुसुत-- संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) यम, मनु, | अच्छा लगा, पसंद आया । वि० (दे०) प्यारा, कर्ण, शनिश्चर, भानुतनय।।
प्रिय, भावता। भानुसुता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) यमुना। भारंगी -- संज्ञा, स्त्री. (सं० ) एक जंगली भाप-भाफ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बाष्प पौधा जो औषधि के काम आता है. असबरग, पा. वप्प ) जल के अति सूक्ष्म कण जो बँभनेटी (प्रान्ती०)। " भारंगी गुडीची उसके खौलने पर ऊपर उठते दीखते हैं, ताप घनदारु सिंही"-लो। पाने पर धनीभूत या द्रवीभूत वस्तुओं की भार-संज्ञा, पु० (सं०) बीस पंसेरी की माप, दशा ( भौ० शा० ) वाष्प, ताप के कारण बोझा, बहँगी का बोझ, रक्षा सँभाल, उत्तरभौतिक पदार्थों की सूचमावस्था ।
दायित्व, किसी कार्य के करने का जिम्मा । भापना-भाँपना-स. क्रि० (दे०) अटकल " शेषहिं इतोन भार है, जितो कृतघ्नी भार" लगाना, कूतना, भीतरी भेद का अनुमान । -नीति । मुहा०--भार उठाना-उत्तर. करना, भाप से बफारा देना।
दायित्व अपने सिर लेना । भार उतारना भाभर-संज्ञा, पु० दे० (सं० वप्र) पहाड़ों (उतरना)-कार्य पूर्ण करना ( होना ), की तराई का वन ।
कर्तव्य या ऋण उतारना । किसी के सिर
For Private and Personal Use Only