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बेतुका
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बेपरवा, बेपरवाह बेतुका-वि० (फा० बे+तुका-हि० ) बेमेल, ! वस्तु से छेदना, भेदना । स० वेधाना, बेढंगा, बेढब, सामंजस्य-विहीन, असंगत, प्रे० रूप-बंधवाना । “सिरस सुमन किमि अनुपयुक्त । स्त्री० बेतुकी।
बेधिय हीरा"--- रामा। बेतुका छंद-संज्ञा, पु. यौ० (हि. बेतुका | बेधर्म, बेधरम-- वि० दे० ( सं० विधर्म )
+छंद सं० ) अमिताक्षर या तुमान्त-रहित, धर्माच्युत, अधर्मी, बेईमान, स्वधर्म-कर्म से अतुकान्त या बिना तुक का छंद। गिरा हुआ । संज्ञा, स्त्री. वधर्मी। बेद-संज्ञा, पु० (दे०) वेद।।
बेधिया- संज्ञा, पु० दे० (हि. वेधना ) बेदखल-वि० (फा०) अधिकार-रहित, अंकुश।। अधिकार च्युत, जिसका कब्जा या दखल | बेधीर*-वि० दे० ( फ़ा० वे- धीर-हि.) न हो, स्वत्व-हीन ।
अधीर । बेदखली-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) भूमि या संपत्ति बेन बेन --- संज्ञा, पु० दे० (सं० वेणु) वंशी,
से कब्जा हटाया जाना, अनधिकार । मुरली बाँसुरी, बाँस, बीन बाजा, सँपेरों बेदम-वि० (फा०) प्राण रहित, मृतक, की महुवर या तृमड़ी।
अधमरा, जर्जर, शिथिल, अशक्त, बोदा। बेनसीब- वि० ( फ़ा. वे । नसीब-अ.) बेदमजन-संज्ञा, पु० (फ़ा०) एक पेड़ जिसकी अभागा, भाग्यहीन, बदकिस्मत । संज्ञा,
छाल और फल औषधि के काम आते हैं। स्त्री. बनसीवी। बेदमुश्क-संज्ञा, पु० (फ़ा०) कोमल सुगंधित बैना, बनवा -- संज्ञा, पु० दे० ( सं० वेणु ) फूलों का एक पेड़।
बाँस का पंग्वा, बाँस. उशीर, खस । “ बेना बेदर्द-वि० (फा०, निर्दय, निष्ठुर, निरदई, कबहुँ न भेदिया, जुग जुग रहिया पास" कर या कठोर हृदय, जो किसी का दर्द या - कवी । व्यथा न समझे, बेदरदी (ग्रा०) । संज्ञा, निमन, बेनमूना* --- वि० दे० (फा० वे + स्त्री० बेदर्दी।
नमूना ) अप्रतिम, अनुपम, अद्वितीय, बेबेदसिरा--संज्ञा, पु. (सं०) एक मुनि । मिपाल । बेदाग-वि० (फ़ा०) साफ़, स्वच्छ, शुद्ध, नी- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वेणी ) स्त्रियों निषि, निरपराध, निष्कलंक, दाग या धब्बा- की चोटी. गंगा, सरस्वती और यमुना का रहित । वि. वेदागी।
संगम, त्रिवेणी, किवाड़ के पल्ले में लगी बेदाना-संज्ञा, पु० दे० (हि. बिहीदाना) लकड़ी जिसके कारण दूसरा पल्ला नहीं बढ़िया काबुली अनार, बिहीदाना के बीज, खुलता। दारु हलदी, चित्रा (औष०) । वि० ( फा० बेनु-संज्ञा, पु० दे० (सं० वेणु ) वंशी, बाँस, बे+दाना = चतुर : मूर्ख, नादान, बेलमझ। बाँसुरी, मुस्ली। “बेनु हरित मनिमय सब बेध-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वेध ) छेद, छिद्र, कीन्हें '-रामा० । नक्षत्र युक्त एक योग । ज्यो०)।
बैपथु-वि० (दे०) विपथु (सं०) कंपित । बेधड़क क्रि० वि० दे० ( फा० - धड़क- बैपरद-वि० दे० फा० + परदा ) नग्न, हि. ) संकोच-रहित, बेखटके, निडर, निर्भय, अनावृत, नंगा, पोट-हित, जिपके परदा निडर या बेखौफ होकर, श्रागा-पीछा किये न हो। मुहा" --बदरद करना-नंगा बिना । वि.-निडर, बेखौफ़ निर्भय जिसे करना, बेपर्द। संज्ञा, खो०-उपदगी। संकोच या स्वटका न हो, निद्र, निर्भीक। बेपरवा, बेपरवाह वि० दे० ( फ़ा. बे+ बेधना-स० क्रि० दे० (सं० बेधन ) नोकदार परवाह ) बेफिक्र, जिसे परवाह न हो, मन
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