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बेल
बेपाइ मौजी, निश्चित, उदार, लापरवाह । संज्ञा, बेरी । संज्ञा, स्त्री-अबेर (दे०) बार, मरस्त्री बेपरवाही । "मनुवा बेपरवाह" कबी० तबा. दफा, देरी, बिलंब, बेरी । “कुबेर बेर बेपाइwt-वि० दे० ( फा० बे-+ उपाय-सं०) कै कही न यक्ष भीर मंडिरे"-रामः । किंकर्तव्य विमूढ, भौचक, उपाय-रहित, “कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।" हक्का-बक्का ।
यौ०-बेर बेर--फिर फिर। (विलो०-अबेर)। बेपीर-वि० ( फ़ा० बे- पीर हि०= पीडा ) बेरजरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. बेर + झड़ी) निठुर, पर-पीड़ा न समझनेवाला, निर्दयी, झड़बेरी । निर्दय, बेरहम, कठोर, क्रूर । "तो मनकी बेरहम- वि० (फ़ा) दया या कृपा-रहित, जानत नहीं, अरे मीत बेपीर"-श० अनु। निर्दय, निष्ठुर । संज्ञा, खी० बेरहमी।। बेदी-वि० दे० (हि. वे - पंदा ) पेंदा- बैरा--सज्ञा, पु०, स्त्री० दे० (सं० बेला ) रहित । मुहा०- दी का लोटा-जो समय. वक्त मौका, सबेरा ।। किसी के तनिक बहकाने से अपना विचार बरियाँ-ज्ञा, स्त्री० दे० हि बेर ) वक्त, बदल दे, कितीबात पर दृढ़ न रहने वाला! बेरा, समय । "पुनि श्राउब यहि बेरियाँ बेफ़ायदा-वि०, क्रि० वि० (फ़ा०) नाहक, काली''- रामा०।। बेमतलब व्यर्थ निरया।
| बरो-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बदरी) बेर का बेफिक-वि० (फ़ा०) बेपरवाह, निश्चित । पेड़. बेड़ो । क्रि० वि० (दे०) वार बेर । संज्ञा, स्त्री० बफ्रिकी।
बेरुवा--वि० ( फा० ) बेमुरवत. बेशील, बेबस-वि० दे० (सं० विवश ) लाचार, नाराज़, विमुख । संज्ञा, स्त्री-बेरुखी, परवश, मजबूर, पराधीन । संज्ञा, स्त्री- बरुखाई। बेबसी।
बेलंदा--वि० दे० ( फा० बलंद ) ऊँचा, बेबाक- वि० (फ़ा०) चुकाया या चुपता विफल, मनोरथ, हताश । किया हुआ, नि.शेष किया हुआ। सज्ञा, बेलंब, विलंब - संज्ञा, पु० दे० (हि. स्त्री० बेबाकी।
विलव ) विलंब देरी बेलम (ग्रा.)। बेव्याहा-वि० द० ( फा० वे + व्याहा-हि.) बेल-संज्ञा, पु० दे० ( सं० विल्व ) गोल कड़े कुँवारा, कंधारा, अविवाहित । स्त्री. बे- बड़े फल वाला एक कँटीला पेड़ और उसके व्याही।
फल, श्रीफल । सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वल्ली) बेभाव-क्रि० वि० (फा० वे-+ भाव-हि० ) फैलने और लहारे से ऊपर उठ कर फैलने वाले बेहद, बिना भाव के।
कोमल पौधे, लता बल्ली. लतर। "सब बेमाता ---सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विमातृ )। ही जानत बदति है, वृक्ष बराबर बेल"-. विमाता, सौतेली माता, माता-हित । ० । मुहा० - बल मढ़े चढ़ना-किसी बेमालूम -- क्रि० वि० फा०) अज्ञात, बिना। काम को अत तक ठीक ठीक पूरा करना या
जाना समझा । वि. जो ज्ञात न होता हो। उतरना । वंश, संतति, फीते, वस्त्र या दोवाल बेमुरव्वत- वि० [फा०) जिसमें मुरव्वत न श्रादि पर कढ़े या बने हुये फूल-पत्ते श्रादि,
हो, तोताचश्म : सज्ञा, स्त्री. मुरवतो। नाव का डाँड । सज्ञा, पु० द० (फ़ा० बेलचा) बेमोका-वि० (फा०) जो ठीक समय पर न एक तरह का कुदाली, सड़क आदि की
हो । संज्ञा, पु०-अवापर का न होना। निधारित सीमा सूचक लकीर । यौ०बैर-संज्ञा, पु० दे० (स० बदरी) एक कटीला | डाक-बल । *- संज्ञा, पु० (दे०) बेले मीठे फल वाला पेड़, बेरी का फल । स्त्री०- | का फूल ! यो बेलपत्र ।
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