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बरज़ोरी १२३६
बरना बलवान, प्रबल. ज़बरदस्त, अत्याचारी । से उत्पन्न हो, फोड़ा, फुड़िया, फुसी । “जनु क्रि० वि० (दे०) ज़बरदस्ती, बलपूर्वक । छुइ गयो पाक बरतोरु"-रामा० । बरज़ोरी*-संज्ञा, स्त्री. (फ़ा०) ज़बरदस्ती, बरतौनी--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० बरताना ) बल प्रयोग । क्रि० वि० (दे०) ज़बरदस्ती से, व्याह में कन्या के पिता या भाई का वर बलपूर्वक । यौ०-(वर जो = रोका+री- के बंधु-बांधवों तथा बरातियों में प्रेमोपहारअरो ) रोका, मना किया । यौ० (बर + जोरी) स्वरूप धनादि के वितरण की रीति । अच्छी जोड़ी, वर युग्म | "अति बरजो री | बरद-बरदा--संज्ञा, पु. दे. ( सं० घर्द ) तऊ अति वर जोरी करी, कैसी बर जोरी बैल, बरधा (ग्रा०)। "बर बौराह बरद मीडि रोरी कह्यो होरी है"- रसाल। असवारा"-रामा० । “ज्यों बरदा बनजार बरणना-स० क्रि० दे० (सं० वर्णन ) के फिरत घनेरे देश"---तु० । वि० पु. (स्त्री०) बरनना (दे०) कहना, बखानना।
यौ० दे० (सं० बरद, स्त्री० वरदा ) बरदान बरत-संज्ञा, पु० दे० (सं० व्रत ) व्रत, देने वाला देवता या देवी। उपवास । संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० बरना= बरदाना--- स० कि० दे० ( वर्द) गाय और बटना) रस्सी। “दीठ बरत बाँधी दिगनि,
बैल का संयोग कराना, जोड़ा खिलाना। चदि श्रावत न डरात" कि० वि० (दे०
क्रि० अ० ---जोड़ा खाना, संयोग करना । बरना) जलता हुआ।
प्रे० रूप-वरदवाना। बरतन-संज्ञा, पु० दे० (सं० वर्तन ) खाने ।
बरदार-वि० ( फ़ा० ) धारण करने या पीने के पदार्थ रखने की धातु या मिट्टी से
माननेवाला, लेने या पालनेवाला, बहन बनी वस्तुएँ, पात्र, भाँडा, मँड़वा (दे०)
करने या ढोनेवाला-जैसे-झंडा बरदार । बर्तन, भाँड़ (सं०) बासन (दे०)।
बरदाश्त-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) सहन करने बरतना-कि० अ० दे० ( सं० बर्तन ) प्रयोग
का भाव या सहन-शक्ति, बरदास (दे०)। में लाना, बरताव या व्यवहार करना।
बरदिया-बरधिया-संज्ञा, पु० दे० (हि. स० क्रि०-व्यवहार या कार्य में लाना,
बरद-+इया-प्रत्य.) बैलों का चरवाहा । इस्तेमाल या उपयोग करना।
बरधा--संज्ञा, पु० दे० (सं० बर्द) वैल, बरतरफ़-वि० यौ० (फा० वर+तरफ़-अ०)
तरफ बली-बर्द, बरदा (दे०)। एक ओर, अलग, किनारे, मौकूफ़, बरखास्त, । बरधाना-स. क्रि० प्र० दे० (हि.) नौकरी से अलग।
बरदाना। बरताना-स० कि० दे० ( सं० बर्तन= |
बरन*--संज्ञा, पु० दे० (सं० वर्ण ) वर्ण, वितरण) बाँटना, वितरण करना।
अक्षर, जाति, रंग । अव्य० (दे०)। बल्कि, बरताव, बर्ताव-संज्ञा, पु० दे० (हि० बर्तन । बरुक । वरन् (सं.)। "तुलसी रघुवर नाम
या वितरण ) व्यवहार, बरतने का ढंग के, वरन विराजत दोय"। बर्ताव (दे०) बाँटने का भाव ।
बरनन -संज्ञा, पु. दे. (सं० वर्णन ) बरती-वि० दे० ( सं० वतिन् हि० व्रती) वर्णन, बखान, वृत्तांत बनन (दे०)। व्रत या उपवास करनेवाला, उपासा । संज्ञा, बरनना -स० कि० दे० (सं० वर्णन) स्त्रो० दे० (सं० वी, वस्ति ) बत्ती। बखान या वर्णन करना, बयान करना। बरतोर, बरतोरु-संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० बरना- स० कि० दे० ( सं० वरण ) व्याहना, बाल +तोड़ना) जो फोड़ा-फुसी बाल टूटने | विवाह करना, चुनना, नियुक्त करना, दान
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