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पीतरत
१० (सं०) पुखराज |
पीतरत्न - संज्ञा, पु० यौ० पीतरस - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हलदी । पीतल - संज्ञा, पु० दे० ( सं० पित्तल ) ताँबे
रजस्ते से बनी एक मिश्रित उपधातु, पीतर ( प्रा० ) ।
पीतला - वि० दे० ( सं० पित्तल ) पीतल पीप - संज्ञा, स्रो० दे० (सं० पूय ) मवाद, का बना, पीतल - निर्मित । फोड़े या घाव का सफेद लसीला विकार, पीब ( प्रा० ) ।
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पीतवास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीकृष्ण । पीतशाल - संज्ञा, पु० (सं० ) विजयसार । पीतसार - संज्ञा, पु० (सं० ) हरि - चंदन, पीला या सफेद चंदन, गोमेदमणि, शिलाजीत । पीतांबर - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पीला वख, रेशमी धोती, श्रीकृष्ण, विष्णु । "पीतांबरं सांद्र पयोद सौभगं - भा० द० । पीन - वि० (सं० ) पुष्ट, दृढ़, स्थूल, संपन्न, पीनी, पीवर | संज्ञा, स्त्री० (सं०) पीनता । प्रगट पयोधर पीन - रामा० ।
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पीनक- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पिनकना ) क्रीम के नशे में आगे को झुक झुक पड़ना, ऊँघना, पिनक । वि० पिनकी । पीनता - संज्ञा, स्त्री० (सं०) मोटाई, दृढ़ता। पीनना - ० क्रि० (दे०) झुक झुक पड़ना, झूमना, ऊँचना, पिनकना (दे० ) | पीनस - संज्ञा, त्रो० (सं० ) प्राण-शक्तिनाशक, नाक का रोग । " पीनस बारे ने तज्यो, शोरा जानि कपूर " - नीति० । संज्ञा, स्त्री० दे० ( फा० फीनस ) पालकी । पीनसा- संज्ञा, त्रो० (दे०) ककड़ी । पीनसी - वि० (सं० पीनसिन ) पीनस रोगी,
मोटी या स्थूल सी ।
पीयूषवर्ष
खींचना | पीना, धूमपान | संज्ञा, पु० ( प्रान्ती० ) तिल की खली । मुहा० ( दे० ) - पीना करना ( बनाना ) -
पीना- - स० क्रि० दे० (सं० पान ) पान करना, घुटुक जाना, गले से द्रववस्तु का घूँट घूँट कर नीचले जाना, सोखना, उत्तेजना, किसी बात या (क्रोधादि) मनोविकार को दबा लेना, प्रगट या अनुभव न करना, सह जाना, उपेक्षा करना, मारना, शराब पीना या हुक्का चुरुट श्रादि का धुँआ अन्दर
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. खूब मारना ।
पीनी - संज्ञा, स्त्री० (दे० ) पोस्त, तिसी ।
पीपर - संज्ञा, पु० दे० ( सं० पिप्पल ) पीपल । " अमिली बर सों ह्र रही, पीपर तरे न जाउँ ”. - स्फु० । पीपरपन - संज्ञा, ५० दे० यौ० (सं० पिप्पलपर्ण) पीपल का पत्ता, एक कर्ण - भूषण । पोपरि-संज्ञा, पु० दे० (सं० पिप्पली ) छोटा पाकर, पिप्पली, पीपल । पीपल - संज्ञा, पु० दे० (सं० पिप्पल ) वट जैसा पीपर का पेड़ जो पवित्र है (हिन्दु) । यौ० चलदल | संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० पिप्पली) एक औषधि | " पीपल रत्ती तून
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तज - स्फु० । पीपरामूर - पीपलामूल- संज्ञा, पु० दे० (सं० पिप्पलीमूल ) एक औषधि, पिपरी की जड़, पिपरामूर (दे० ) ।
पीपा - संज्ञा, पु० (दे० ) तेल या शराब
आदि रखने का लोहे या काष्ट का बड़ा ढोल - जैसा गोल पात्र |
पी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पूय ) मवाद | पीय - संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रिय ) प्रिय, स्वामी, पति, प्यारा, पिय । पीयूख - संज्ञा, पु० दे० (सं० पीयूष) अमृत, "पीयूखतें मीठेपके, सुन्दर रसाल रसाल हैं"
- भूष० ।
पीयूष -संज्ञा, पु० (सं०) अमृत, दूध, ७ दिन की व्यायी गाय का दूध । पीयूषभानु - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) चन्द्रमा । पीयूषवर्ष - संज्ञा, पु० (सं०) चन्द्रमा, कपूर, श्रानन्द-वर्धक, एक मात्रिक छंद ( पिं० ) । वि० पीयूषवर्षी ।
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