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पीर
पीर - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पीड़ा ) पीड़ा, " सो का दर्द, सहानुभूति, पीरा (दे०), जानै पीर पराई " – लो० । वि० ( फ़ा० ) बूढ़ा, महात्मा, बड़ा सिद्ध । (संज्ञा, खो०पीरी ) ।
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पीराt - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पीड़ा ) पीड़ा, दर्द | वि० दे० (सं० पीत) पीला । " गयो बिखाद मिटी सब पीरा " - रामा० ।
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मुख
पीलसाज - संज्ञा, पु० दे० ( फा० फतीलसोज़ ) चिरागदान, दीवट, दीयट (दे० ) | पीला - वि० दे० (सं० पीत) हल्दी सा, पीले रंग का, निस्तेज, कांति-हीन, सोने या केसरिया रंग का, हल्दी या सोने का सा रंग स्त्री० पोली संज्ञा, पु० । मुहा० - पीला पड़ना या होना – रोग या भय से पीला पड़ जाना, देह में रक्ताभाव होना । पीलापन-संज्ञा, पु० (हि०) पीला होने का भाव, पीतता, पियराई (दे० ) ! पीलिया - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पीला ) कमल या कमलक रोग (वै० ) । पीलु - संज्ञा, पु० (सं० ) पीलू वृक्ष, फूल, फलवान पेड़, हाथी, हड्डी का टुकड़ा परिमाणु |
पँवार
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पीघ-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रिय ) प्यारा, पीउ (ग्रा० ), स्वामी, पति बाहर पिउ fur करत हौ, घट भीतर हैं पीव " - स्फु० । पोषना - स० क्रि० दे० (हि० पीना) पीना । "सूखी रूखी खाय कै ठंढा पानी पीव " —कबी०
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पीलू - संज्ञा, पु० दे० (सं० पीलू ) काँटेदार, एक पेड़ (०) सड़े फल यादि के सफेद पतले कीड़े | संज्ञा, पु० (दे०) एक राग (संगी० ) ।
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पीवर - वि० (सं०) स्थूल, मोटा, हद, भारी । स्त्री० पोवरा | संज्ञा, स्त्री० पीवरता ।
पीरी - संज्ञा, खो० ( फा०) बुढ़ापा, वृद्धापन, गुरुवाई, शासन, टेका, इजारा ।
पील - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) गज, हाथी, शतरंज पीवरी - संज्ञा, स्रो० (सं०) सरिवन सतावर, का एक मोहरा, फील या ऊँट । ( श्रौष० ) गाय, तरुणी । पोलपाल - संज्ञा, पु० दे० ( फा० फीलवान ) |पीसना - स० कि० दे० (सं० पेषण ) अनाज, फीलवान, हथवाल |
पीलपाँव - संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० पीलया ) श्लीपद रोग (वै०) फीलपा ( फ़ा० ) ।
पीलवान - संज्ञा, पु० दे० ( फा० फोलवान ) फीलवान, हथवाल |
अन्य वस्तु का घाटा बनाना, चूर्ण करना, जल में रगड़ कर महीन करना, कुचल कर धूल सा करना। मुहा० - किसी मनुष्य को पीसना - उसे बड़ी हानि पहुँचाना, चौपट या नष्टप्राय कर देना । छति श्रम करना, जान लड़ाना | संज्ञा, पु० पीसी जाने वाली चीज़, एक व्यक्ति के पीसने योग्य अनाज या वस्तु । स० रूप-- पिसाना, प्रे० रूप-- पिसवाना ।
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aa विशाल पीवर अधिकाई " - रामा० । " दिने गच्छत्सु नितान्त पीवरम्” – रघु० ।
पीहर – संज्ञा, पु० दे० (सं० पितृगृह ) स्त्रियों के माँ-बाप का घर, मैका, मायका, प्रियवर । पीहु- पीहू - संज्ञा, पु० (दे०) एक कीड़ा, पिस्सू । पुंख - संज्ञा, पु० (सं०) बाण का अंतिम या पिछला भाग जिसमें पर लगे रहते हैं । "सक्तांगुली सायक- पुंख एव रघु० । पुंग - संज्ञा, पु० (सं०) राशि, समूह, श्रेणी । पुंगल - संज्ञा, पु० (सं०) श्रात्मा । पुंगव - संज्ञा, पु० (सं०) बैल, वर्द, वरद । वि०श्रेष्ठ, उत्तम, बढ़कर ।
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पुंगीफल - पंगीफल - संज्ञा, पु० दे० (सं० पुंगीफल ) सुपारी । पुंकार, पुकार | पूँछ ) मोर, मयूर | वि० लम्बी पूँछ बाला ।
संज्ञा, पु० दे० ( हि०
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