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पीठना
११३३
पोतमणि दिखाना, भाग जाना, पीठ दिखाना, विदा पीडुरी*-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पिंडली) या विमुख होना अनिच्छा दिखाना। पिंडली, पिंडुली, पिंडुरी (ग्रा.)। (घोड़े बैलादि को पीठ ) लगना- पीड्यमान-वि० (सं०) पीड़ा या दुख-युक्त। पीठ पर घाव हो जाना, पीठ का पक पीढा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पीठक) पाटा, जाना। चारपाई से पीठ लगाना
पीठक, (सं०) पीठ। छोटी कम चौड़ी चौकी । पड़ना, लेटना, सोना। किसी वस्तु का
पीढ़ी-संझा, स्रो० सं० (हि० पीढ़ा, सं० ऊपरी या, पृष्ठ भाग।
पीठिक ) कुल-परंपरा, किसी व्यक्ति से बाप. पीठना-स०क्रि०दे० (हि०पीसना) पीसना।
दादे या बेटे-पोते आदि के क्रम से प्रथम, पीठमर्द-संज्ञा, पु. (सं०) ४ साखाओं में से
द्वितीयादि स्थान, पुश्त, वंश-क्रम, संततिनायक का वह सखा जो कुपित नायिका को
समूह, संतान, किसी समय किसी वर्ग के प्रसन्न कर सके, वह नायक जो रूठी हुई
व्यक्तियों का समूह । संज्ञा, स्त्री० (अल्प०) नायिका को मना सके ( नाट्य०)। पीठ स्थान-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पीठ, पृष्ठ ।
छोटा पीढ़ा (हि०)। पीठा-संज्ञा, पु० दे० (सं०) पीड़ा, पाटा,
पीत-वि० (दे०) पीला, पीले रंग का, सिंहासन । " जवेन पीठादुदतिष्टदच्युतः' |
कपिल, भूरा । स्त्री० पीता । " नील-पीत -माघ० । संज्ञा, पु० दे० ( सं०पिष्टक ) जलजात सरीरा''-रामा० । वि० (सं० एक पकवान ।
पान) पिया हुआ। संज्ञा, पु० (सं०) भूरा पीठि -संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि०पीठ ) पीठ । |
या, पीला रंग । पुखराज, मूंगा, हरताल, पीठिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पीढ़ा, अंश,
कुसुम, हरि चन्दन ! भाग, अध्याय ।
पीतकंद संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गाजर ।
पीतक-संज्ञा, पु० (सं०) केसर, हरताल, पीठिया ठोक -वि० यौ० (दे०) मिला, |
हल्दी, पीतल, अगर, शहद, पीला चंदन । सटा या जुड़ा हुआ।
वि० पीला, पीले रंग का। पीठी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पिष्टक ) उर्द की धोई और पीसी हुई दाल, पिट्ठी, पीठ, |
पीतकदली-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पीला पीठि (ग्रा.)।
केला, सोनकेला, चंपक ।
पीतकरवीर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पीला पीड़-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रापोड़) सिर में
कनौर । बालों पर बाँधाने का एक गहना, पीड़ा, दर्द । पीड़क-- संज्ञा, पु० (सं०) दुख या पीड़ा |
पोत चन्दन- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हरि देने वाला, सताने वाला, दुखदायक।
चन्दन, पीले रंग का चन्दन (दविड़ देश) । पीड़न-संज्ञा, पु. (सं०) दबाना, पेरना,
पीतता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पीलापन, जर्दी । दुख या कष्ट देना, उच्छेद अत्याचार करना, पीतधातु*--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) गोपी. दबोचना, नाश । (वि० पीड़क, पीड़नीय, चंदन, रामरज, सुवर्ण। पीड़ित)।
पीतपुष्प-संज्ञा, पु० यो० (सं०) चंपा, कटपीडा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुख, कष्ट, व्यथा, सरैया, पीला कनैर, तोरई, धिया ।
दर्द, व्याधि, वेदना, पीरा (ग्रा०)। पीतम-वि० दे० (सं० प्रियतम ) प्रीतम पीड़ित - वि० (सं०) क्लोशित, दुखित, रोगी, (दे०), अति प्यारा या स्नेही, पति । दबाया या नष्ट किया हुआ।
पीतमणि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पुखराज ।
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