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पिरकी
११३०
पिशुन-वचन पिरकी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पिड़क) | पिलाना-स० कि० (हि० पीना ) पान फुन्सी, फुड़िया।
| कराना, धुसेड़ना, पीने को देना, ढीला या पिरथी -संज्ञा, स्त्री० (दे०) पृथ्वी (सं.)।। पतला करना। पिराई*--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पियराई ) पिलुवा-संज्ञा, पु० (दे०) एक कीड़ा। पियराई, पीलापन, पीड़ा।
पिल्ला-संज्ञा, पु० (दे०) कुत्ते का बच्चा । स्त्री० पिराक-संज्ञा, पु० दे० (सं० पिष्टक ) गोझा, पिल्ली।
गोझिया, एक पकवान । (खो०) अल्पा०पिल्लू-- संज्ञा, पु० दे० (सं० पीलू = कीड़ा) सड़े पिरकियां।
घाव या फलादि का एक लंबा, सफ़ेद कीड़ा। पिराना*-अ० क्रि० दे० (सं० पीड़न ) |
पिव, पोष-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रिय ) दुखना, दर्द करना, पीड़ित होना।
पिउ, पीउ (ग्रा० ) स्वामी, पति, प्यारा । पिरारा-संज्ञा, पु० दे० (पिडारा) पिंडारा।
बाहर पिव पिव करत हौ, घट-भीतर है पिरीतम*--संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रियतम )
पीवा" स० क्रि० (सं०) पीना, पीयो । प्यारा, स्वामी, पति, प्रीतम (दे०)।
'पिव हे नृपराज रुजापहरम्"-भो० प्र० । परीत-परीता*-वि० दे० (सं० प्रीत) प्रीत,
पिधाना-स० क्रि० दे० (हि० पिलाना) प्यारा, प्रिय । “हा रघुनन्दन प्रान-पिरीते"।
पिलाना। पिरोजा-संज्ञा, पु० दे० (फा० फीरोज़ा) फीरोजा, एक हरा नग, एक गाढ़ा द्रव पदार्थ,
पिशंग-संज्ञा, पु. ( सं०) पिंगल या पीत गंध-फिरोजा। " मोती मानिक, कुलिस,
वर्ण, पीला रंग । वि०-पिंगल वर्ण वाला। पिरोजा"-रामा० ।
"पिशंग मौंजीयुजमर्जनच्छबिम्-माघ०।" पिरोना-स० क्रि० दे० (सं० प्रोत) गूंधना, |
पिशाच- संज्ञा, पु. ( सं०) भूत, बैताल, पोहना (दे०) छेद में तागा डालना। ।
देव-योनि विशेष, पिसाच (दे०) वि. पिलई-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्लीहा ) पिलही, पैशाचिक । स्त्री० पिशाची, पिशाचिनि बरबट, तापतिल्ली, पिल्ला का स्त्री०। ।
पिशाचिनी। “कहु भूत, प्रेत, पिशाच, पिलक-संज्ञा, पु० (दे०) एक पीत पती।
डाँकिनि योगिनी सँग नाचहीं" । वि०पिलकना-अ० कि० (दे०) गिराना, ढकेलना। पिशाची-पिशाच-सम्बंधी, भूत का वशकारी। पिलखन-संज्ञा, पु. (दे०) पाकर पेड़। पिशाचप्रस्त-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) उन्मत्त, पिलचना-अ० क्रि० (दे०) लिपटना। वातुल, सिड़ी, पागल, प्रेत-बाधा-युक्त । पिलड़ी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) गोली, पिण्डी। पिशाचघ्न-वि० (20) पिशाच-नाशक । पिलना-अ० क्रि० दे० (सं० पिल = प्रेरण) | पिशाचक-संज्ञा, पु० (सं०) भूत, पिशाच । एक बारगी घुस या टूट पड़ना, झुक या ढल | पिशाचकी--संज्ञा, पु० (सं०) कुवेर । पड़ना, भिड़ या लिपट नाना, रस या तेल के | पिशित-संज्ञा, पु० (सं०) आमिष, मांस । लिये दबाया जाना, प्रवृत्त होना। पिशिताशन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राक्षस, पिलपिला-वि० दे० ( अनु० ) नरम और मांसाहारी, मांस खाने वाला।
गीला । संज्ञा, स्त्री० पिलपिलाहट । पिशुन-संज्ञा, पु. ( सं०) दुष्ट, छली। पिलपिलाना-स० क्रि० दे० (हि० पिलपिला) | पिसुन (दे०) " पिसुन छल्यौ नर सुजन
किसी गीली वस्तु को ढीला या नरम करना, सों'–० । धोखेबाज, कर, निंदक । पिलवाना-सं० कि० (दे०) पिलाना (हि.) | पिशुन-वचन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दुर्वाक्य, का प्रे० रूप, स० क्रि० (हि. पेलना) पेर वाना। गाली । यौ० पिशुन-वाक्य ।
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