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पीछा
पिशुनता
११३१ पिशुनता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुष्टता, करता। पीजना-स० कि० दे० (सं० पिंजन ) रुई पिशुना-संज्ञा, स्त्री० (सं०) चुगली।
| धुनना। प्रे० रूप-पिंजवाना। पिष्ट-वि० (सं०) पिसा हुआ।
पींजरा, पीजड़ा*-संज्ञा, पु० दे० (सं० पिष्टक-संज्ञा, पु० (सं०) पिष्ट, पीठी, कचौरी, पंजर) पिंजड़ा। "दस द्वारे को पीजरा" कवी। पुत्रा, रोट ।
पीडा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पिंड) देह, शरीर, पिट-पेषण-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पिसे को पिंड, पेड़ का तना, पेड़ी (ग्रा०) गीली या फिर पीसना, व्यर्थ बात को दुहराना सूखी वस्तु का ठोस गोला, पीड़ा (ग्रा०) चर्वितचर्वण ।
लड्डु,, पिंड खजूर । पिसनहारी-संज्ञा, पु० स्त्री० दे० (हि०पीसना । पी*-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रिय ) प्रिय, पति ।
+हारी-प्रत्य० ) श्राटा पीसने वाली। संज्ञा, पु. ( अनु० ) पपीहा की बोली। पिसना-अ० कि० दे० (हि. पीसना) पिस
"पी हा! पी हा! रटत पपीहा मधुवन में'कर पाटा हो जाना, कुचल या दब जाना,
ऊ. श०। बड़ा कष्ट, हानि या दुख उठाना, बहुत थक
पीक-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पिच) थूक मिला जाना । स० क्रि०-पिसाना, प्रे० रूप ---
पान-तम्बाकू का रस । “पान लाल पीक पिसवाना।
लाल पीक हू की लीक लाल"। पिसाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पीसना ) पीकदान-संज्ञा, पु० यौ० (हि० पीक+दानपीसने का भाव, कार्य या मूल्य, श्रम । |
फ़ा०) उगालदान, पीक थूकने का बरतन । पिसाच-संज्ञा, पु० (दे०) पिशाच ( सं०)। पीकना-अ० क्रि० दे० (सं० पिक) पिहकना, पिसान-संहा, पु० दे० ( सं० पिष्टान्न ) पोसा
कोयल, पपीहा का बोलना । हुमा अनाज, आटा, चूर्ण, चून (दे०)।
पोका-संज्ञा, पु० (दे०) नया कोमल पत्ता, पिसुन -संज्ञा, पु० (दे०) पिशुन (सं०)।
पल्लव, कोंपल | पिसौनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पीसना )।
पीच-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पिच्च ) माँड़, पीसने का कार्य, कठिन श्रम का काम। पिस्तई-वि० दे० ( फा० पिस्तः । पिस्ते के पीछा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पश्चात् ) पीठ रंग का, हरा-पीला मिला रंग।
की ओर का भाग, पश्चात् भाग, (विलो. पिस्ता-संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० पिस्तः) पिस्ता आगा)। मुहा०-पीछा दिखानाका वृक्ष, एक हरा मेवा ।
पीठ दिखाना, भागना । पीछा देना (दे०) पिस्तौल-संज्ञा, पु० दे० (अ० पिस्टल)
-साथ देकर हटना, किनारा करना । छोटी दूक, तमंचा।
किसी घटना के पश्चात् का समय, पीछे पिस्सू-पिसू-संज्ञा, पु० दे० ( फा० पश्शः) चलते हुए साथ रहना । मुहा०-पीछा
कुटकी, छोटा उड़ने और काटने वाला कीड़ा। पकड़ना-अनुसरण करना, पीछे या पिहकना-अ० कि० दे० (अनु०) कोकिला
सहारे में चलना । पीछा करना (पकपादि चिड़ियों की बोली, कूकना।
डना)-तंग करना, गले पड़ना, मारने या पिहित-वि० (सं०) छिपा हुआ । संज्ञा,
पकड़ने को पीछे चलना, खदेड़ना । पीछा पु. (सं०) एक अर्थालंकार जिसमें किसी होना-मर जाना । पीछा छुड़ानाके मन का भाव जान क्रिया से अपने
जान छुड़ाना, अप्रिय सम्बन्ध हटाना। पीछा भाष की सूचना हो । “पलाल जाले छूटना-पिंड छूटना, जान छूटना। पीछा पिहिताः "-नैष ।
छोड़ना-परेशान या ग न करना,
लपसी, पीक ।
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