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अपकाजी
१०३
अपछाया अपकाजी--वि० ( हि० पाप-+-काज ) संज्ञा, स्त्री-अपक्कता-कच्चाई । स्वार्थी, मतलबी।
अपगत-वि० (सं० ) दूर गया, मृत, संज्ञा, पु० हि०- अपकाज ---- स्वार्थ, __ मरा हुआ, नष्ट, भागा हुआ। मतलब ।
अपगा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) नदी, सरिता । अपकार-- संज्ञा, पु० (सं० ) बुराई, अनुप- अपघन-संज्ञा, पु० (हि.) शरीर । कार, हानि, क्षति, नुकसान, अहित, अनिष्ट, | वि० मेघ-रहित । निरादर, बुरा व्यवहार, अपमान, अनादर। अपघात-संज्ञा, पु. ( सं०) हत्या, हिंसा, अपकारक-वि० (सं० ) अपकार करने विश्वासघात, धोखा, आत्मघात । वाला, हानिकारक, विरोधी, द्वेषी, अनिष्ट. वि०-अपघातक- हत्यारा, हिंसक । कारी।
विश्वासघाती, अात्मघातक । अपकारी-वि० (सं० अपकारिन् ) हानि- वि०---अपघाती--हिंसक, विश्वासघाती। कारक, बुराई करने वाला, विरोधी, द्वेषी। संज्ञा, पु० (हि. अप-अपना+घात-मार) अपकारीचार ---वि० ( सं० अपकार --- आत्महत्या, अात्मघात । आचार ) हानिकारक, विघ्नकारी।
अपच-संज्ञा, पु. ( सं० ) अजीर्ण, अनपच "जे अपकारीचार, तिन्ह कह गौरव मान (दे०) कुपच, बदहज़मी। बहु”—रामा०।
अपचय-संज्ञा, पु० (सं०) हानि, कमी, अपकीरति*-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० नाश, पूजा, उबकाई, अजीर्ण । अपकीर्ति) अपयश।
अपचार--संज्ञा, पु. ( सं० ) अनुचित अपकीति-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अपयश, बर्ताव, बुरा श्राचरण, दुराचरण, अनिष्ट, अयश, बदनामी, निंदा, अकीर्ति, अख्याति, बुराई, निंदा, अपयश, कुपथ्य, स्वास्थ्यकुनाम ।
नाशक व्यवहार, टोटा, घाटा, क्षति, अपकृत्-वि० (सं० ) अपमानित, जिसका क्षीणता, भ्रम । अपकार किया गया हो, जिसका विरोध | अपचारी-वि० ( सं० ) दुराचारी, किया गया हो, (विलोम ) उपकृत ।। कुपथगामी। अपकृति--संज्ञा, स्त्री० (सं० ) अपकार, अपचाल -संज्ञा, पु. (दे० ) (हि. अयश, हानि ।
अप-+-चाल ) कुचाल, नटखटी, शरारत, अपकृष्ट-वि० (सं० ) गिरा हुश्रा, पतित, खोटाई, बुराई ।।
भ्रष्ट, अधम, नीच, बुरा, खराब, निकृष्ट । अपची-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) गंडमाल अपकृष्टता-संज्ञा, भा० स्त्री. ( सं० ) रोग का एक भेद। पतन, नीचे गिरना, निकृष्टता, अधमाई अपच्छी*-संज्ञा, पु० दे० (सं० अपक्षीय ) (दे०) जघन्यता, नीचता। ..
विपक्षी, विरोधी। अपक्रम-संज्ञा, पु० (सं० ) व्यतिक्रम, | वि०-- पक्ष-हीन, (दे०) अपच्छ, अपक्ष, क्रमभंग, गड़बड़, उलट-पलट, क्रम-विपर्यय, (सं०) विलोम-सपक्षी, सपक्ष । भागना, छूटना, पलायन ।।
अपरा*--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० अप्सरा) अपक्रोश-संज्ञा, पु. ( सं० ) निंदा, देव-वधूटी। भर्त्सना।
"बरसि प्रसून अपछरा गाई"-रामा० । अपक्क-वि० ( सं० ) बिना पका हुआ, अपछाया-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) प्रेत, उप. कच्चा, अनभ्यस्त, असिद्ध ।
देवता।
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