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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्याय अपकलंक अन्धाधय-वि० (सं०) संयोजित, संयुक्त, संज्ञा, पु. (दे० ) अन्हान-न्हानइंद्व समास, का एक भेद (व्याकरण)। (हि. नहान, सं० स्नान ) असनान । अन्वित-वि. ( सं० ) युक्त, शामिल. श्रन्होना (अनहोना )-संज्ञा, पु० दे० सम्बंधित, मिला हुआ। (हि. अन --होना) न होने वाला, असाध्य, अन्वीक्षण-संज्ञा, पु० (सं० ) गौर, विचार, असम्भव, जो न हो सके । खोज, तलाश, गवेषण, अनुसंधान। स्त्री० अनहोनी। संज्ञा, पु. (सं० ) अन्वीक्षक-खोजने अय-संज्ञा, पु० (सं० ) जल, पानी, वारि, वाला। तोय, अम्बु, पय । स्त्री० अन्वीक्षिका। अपंग-वि० ( सं० अवांग ) अंग-हीन, अन्वीक्षा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) ध्यानपूर्वक लँगड़ा, लूला, अशक्त, असमर्थ, असहाय, देखना, खोज, तलाश, अनुसंधान । बेबस । वि० अन्वीक्षित। संज्ञा, भा० स्त्री० अपंगता। अन्वेषक-वि० (सं० ) खोज करने वाला, अप-उप० (सं० ) उलटा, विरुद्ध, बुरा, पता लगाने वाला, गवेषक । अधिक, नीच, अधम, भ्रंस, असम्पूर्णता, स्त्री० अन्वेषिका। विकृत, त्याग, वियोग, वर्जन, यह शब्दों वि० अन्वेषित, अन्वेषणीय। के आगे आकर शब्दों के अर्थों में इस प्रकार अन्वेषण-संज्ञा, पु. ( सं० ) खोज, विशेषता उत्पन्न कर देता है-निषेधतलाश, अनुसन्धान। अपमान-अपकृष्ट-( दूषण ) अपकर्मस्त्री० अन्वेषणा। विकृति- अपांग - विशेषता - अपाहरण, अन्वेषी-वि० (सं० अन्वेषिन् ) खोजने । विपर्यय । वाला, ढूंढ़ने वाला, तलाश करने वाला। संज्ञा, पु. ( सं० ) चौर्य-निर्देश, यज्ञ-कर्म, स्त्री० अन्वेषिणी। हर्ष, अनिर्देश्य, प्रज्ञा । अन्हवाना-कि० स० दे० ( हिं० नहाना ) सर्व०-श्राप का संक्षिप्तरूप ( यौगिक में ) स्नान कराना, नहलाना, धुलामा। जैसे -..अपस्वार्थी, अपकाजी। " प्रथम सखन अन्हवावहु जाई "- अपकर्ता--संज्ञा, पु. (सं० ) हानि पहुँचाने रामा०......अन्हवाये"... रामा०। वाला, पापी। ग्रन्हाना*-नहाना-स० क्रि० दे० स्त्री. अपकी । (प्रान्ती. ) (हि. नहाना ) नहाना, स्नान अपकर्म- संज्ञा, पु. ( सं० ) बुरा काम, करना। कुकर्म, पाप, दुष्कर्म ।। "उतरि अन्हाये जमुन-जल जो सरीर-सम अपकर्ष-संज्ञा, पु. ( सं० ) नीचे को स्याम"..- रामा० । खींचना, गिराना, घटाव, उतार, निरादर, " कान्ह गये जमुना नहान पै नये सिरसों, . अपमान, पतन, बेकदरी, मुख्य काल के नीकै तहाँ नेह की नदी मैं न्हाइ आये हैं- रहते अमुख्य काल में कर्म करना, ऊ. श० । जघन्यता। " न्हात जमुना मैं जलजात एक देख्यौ अपकर्षण-संज्ञा, पु. (सं० ) खींचना, जात".-ऊ. श० । तानना। " सकल सौच करि जाइ अन्हाये "- अपकलंक -- संज्ञा, पु० (सं० ) अपयश, रामा०। ___ कलंक, मिथ्याबाद, कुनाम, दुर्नाम । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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