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पितृऋण
११२८
पिनपिन पितृऋण-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पितरों | पित्त-प्रकृति-वि० यौ० (सं०) वह व्यक्ति, (पितादि ) के प्रति ऋण, जो पुत्र उत्पन्न जिस के शरीर में कफ-बात से पित्त अधिक हो। करने से पटता है।
| पित्तप्रकोपी-वि० यौ० (सं० पित्तप्रकोपिन् ) पितकर्म-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० पितृ कर्मन् ) पित्त बढ़ाने वाले पदार्थ ।
श्राद्ध, तर्पण आदि पितरों के अर्थ कर्म । पित्तल-वि० दे० ( सं० पित्त ) पित्तकारी। पितृकुल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बाप का वंश। संज्ञा, पु० (दे०) भोजपत्र, हरताल, पीतल | पितृगृह-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) बाप का पित्ता-संज्ञा, पु० दे० (सं० पित्त) पित्ताशय,
घर, नैहर, (स्त्रियों का) मायका (दे०)। जिगर में पित्त की थैली । मुहा०-पित्तापितृतर्पण-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तर्पण, उबलना या खौलना-अति क्रोध प्राना,
पितरों को जलदान या पानी देना मिजाज उभड़ उठना । पित्ता निकापितृ ीर्थ-संज्ञा, पु० यौ० (स०) गया तीर्थ, | लना-अधिक श्रम करना । मित्ता
तर्जनी और अंगुष्ट के मध्य का भाग। पानी करना-अधिक श्रम से या जान पितृत्व- संज्ञा, पु० (सं०) पिता या पितरों लड़ा कर कार्य करना । पित्तामरना का भाव ।
--- क्रोध न रहना । पित्ता मारना-क्रोध पितृपक्ष-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) क्वारमास का दवाना । अरोचक या कठिन काम से न
कृष्ण पक्ष, पिता के सम्बन्धी, पितृ-कुल, उबना, साहस, हौसिला। पितर-पच्छ । (दे०)।
पित्ताशय-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जिगर में पितृपद- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पितरों का लोक। पीछे और नीचे वाली पित्त रहने की थैली । पितृमेधि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वैदिक काल पित्ती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पित्त-+ई)
में श्राद्ध से भिन्न अंत्येष्टि कर्म का एक भेद । | एक रोग जिसमें खुजलाने वाले ददोरे देह पितृयज्ञ-संज्ञा, पु० यौ० सं०) श्राद्ध, तर्पण। पर निकल आते हैं, गर्मी से लाल छोटे दाने, पितृयाण-संज्ञा, पु० यौ०(सं०) मरने के पीछे | अँधोरी। ti-संज्ञा. पु.
| अँधोरी। --संज्ञा, पु० (ग्रा०) पितृव्य जीव का चन्द्रमा के प्राप्त होने का रास्ता । (सं०) चचा, काका, पीती (प्रा.)। वि. पितृलोक--संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) पितरों (दे०) पित्त प्रकृति वाला।
का लोक, पितृपद, पितरों का स्थान । पिच्य–वि० (सं०) पितृ सम्बन्धी। पितृव्य-संज्ञा, पु० (सं०) चाचा, चचा। पिदड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० (अनु०) पिद्दी, पित्त-संज्ञा, पु० (सं०) यकृत में बना | बहुत छोटी चिड़िया, नगण्य या तुच्छ वस्तु । शरीर-पोषक एक पीत द्रव धातु, पित, पित्ता। पिद्दा (पिद्दी)—संज्ञा, पु. ( स्त्री०) दे. मुहा०-पित्त (पित्ता) उबलना या | (अनु० ) पिदड़ा या पिदड़ी, चिड़िया। खौलना-मन में जोश श्राना । पित्त लो०--"क्या पिद्दी और क्या पिद्दी गरम होना-शीघ्र क्रोध आना।
का शोरबा।" पित्तन्न-वि० (सं०) पित्त-नाशक । विधान-संज्ञा, पु. (सं०) गिलाफ़, पर्दा, पित्तज्वर-संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) पैत्तिक । ढक्कन, आवरण किवाड़, तलवार का म्यान।
ज्वर, पित्त-प्रकोप से उत्पन्न ज्वर। पिनकना-अ० क्रि० दे० (हि० पीनक) पित्तनी-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) शालपर्णी, (अफ़ीम से) पीनक लेना, ऊँघना, नींद के सरिवन (दे०) (औष०)।
मारे धागे को झुकना। पित्तपापड़ा-पित्तपापरा-संज्ञा, पु० दे० पिपिना-संज्ञा, स्त्री० दे० (अनु०) (सं० पर्पट ) पितपापरा (औष०)। बच्चों का रोना । वि० पिनपिनहा ।
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