________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
पिछवाई
११२७
पित
पिछवाई संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० पीछा ) पिट्ट संज्ञा, पु० दे० ( हि० पिठ + ऊ -
पीछे की तरफ काटने वाला परदा । पिछवाड़ा - संज्ञा, पु० दे० हि० पीछा + वाड़ा) घर के पीछे का भाग या स्थान पिछवारा ( ० ) । पिछाड़ी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पोछा ) पीछे का भाग या खंड, पिछला हिस्सा, घोड़े के पिछले पैर बाँधने की रस्सी । पिछानना *[* - स० कि० दे० हि० पहचानना) पहचानना । " जाति ना पिछानी श्रौ न काहू को पिछानति है "पिछूत-पिछ- धव्य दे० ( हि० पीछे) पश्चात्, पीछे, पीछे की ओर, पछोत (दे० ) । पीछे का भाग । सं० पु० (दे० ) fugarst |
- रत्ना० ।
पिकेल पहेल - वि० दे० ( हि० पोछा ) पिछवाड़ा | संज्ञा० पु० (दे०) एक भूषण पछली (ग्रा० ) स्त्री० ।
पिछौं हैं, पत्रों हैं - क्रि० वि० दे० ( हि० पाछा) पीछे पीछे की ओर, पीछे से । पिछौरा- संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्षपट ) . चादर, दुपट्टा स्रो० पिछौरी |
पिटंत - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पीटना + अंतप्रत्य० ) पीटने की क्रिया का भाव । पिटक - संज्ञा, पु० (सं०) पिटारा, पिटारी, फुंसी, फोड़ा, ग्रंथ - विभाग । त्रो० पिटका । पिटना - ग्र० क्रि० ( हि०) मारा जाना, मार खाना, ठोंका जाना, बजना | संज्ञा, पु० चूना पीटने की थापी । स० रूप-पिटाना प्रे० रूप पिटवाना |
पिटाई - संज्ञा, स्त्री० ( हि० पीटना ) पीटने . का काम या भाव या मजदूरी, मार, श्राघात, चोट, प्रहार |
पिटारा - संज्ञा, पु० दे० (सं० पिटक) पेटारा (दे०), बाँस श्रादि का एक ढक्कनदार पात्र । ( स्त्री० अल्या० पिटारी ) । पिट्ट – वि० दे० ( हि० पिटना ) मार खाने का अभ्यासी, अति प्रिय ।
a
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रत्य० ) अनुयायी, अनुगामी, सहायक, साथी खिलाड़ी का कल्पित संगी जिसके स्थान पर वह स्वतः खेले ।
पिठर - संज्ञा, पु० (दे०) मोथा, मथानी, थाली, घर, अग्नि ।
दे० (स्रो०)
पिठवन विथवन- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पृष्ठ पर्णी ) पृष्ठपर्णी, (श्रौष०) पिथौनी (ग्रा० ) । पिठी- गिट्टी - संज्ञा, स्त्रो० (दे०) उरद की भीगी धोई और पिसी दाल, पीठो (ग्रा० ) । पिठौरी - संज्ञा, स्रो० दे० (हि० पिठी + औरी - प्रत्य० । पिठी या पीठी की बरी या पकौड़ी, मिथौरी | पिडक ( ण्ड़िका ) सं० पु० फोड़ा, फुन्सी पिरकी (ग्रा० ) । पितंबर - सज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० पीतांबर ) पीला वस्त्र, पीली रेशमी धोती, श्रीकृष्ण । पित्तपापड़ा-पितपापरा - सज्ञा, पु० दे० (सं० पपेट) पित्तपापरा, एक औषधि । पितर - संज्ञा, ५० दे० (सं० पितृ ) मृत पूर्वज, मरे पुरखा । यौ० पितर- पच्छ । पितरायँधा - संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० पीतल + गंध) पीतल का कसाव, पितराईंध (ग्रा० ) । पितरिहा - वि० दे० (हि० पीतल ) पीतल का । पितरौला - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पीतल ) पितृ पूजन का बरतन | पितलाना- पितराना -- अ० क्रि० दे० ( हि० पीतल ) पीतल की कसावट या पितरायँध । पिता - संज्ञा, पु० (सं० पितृ का कर्ता ) जनक, बाप, पितु (दे० ) । पितामह - संज्ञा, पु० (सं०) पिता का पिता, दादा, शिव, भीष्म, ब्रह्मा । स्त्री० पितामही । पितुसंज्ञा, पु० दे० (सं० पितृ ) बाप | "ते पितु मातु कहौ सखि कैसे " पितृ - संज्ञा, ५० (सं०) पिता, मरे पुरखा, प्रेतत्वमुक्त पूर्वज, एक प्रकार के उपदेवता ( सब जीवों के श्रादि पूर्वज ) ।
1
" - रामा० ।
For Private and Personal Use Only