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पाप
पानी फीका पड़ना। पानी-भरी खाल-अतिक्षण- जाना। पानी पड़ना-मेह बरसना । भंगुर या अनित्य शरीर । पानी में आग पानी पीकर कोसना-सदा बुरा मनाना, लगाना-जहाँ सम्भव न हो वहाँ झगड़ा अशुभ चाहना । पानी भरना (भराना)करा देना । पानी में फेंकना या बहाना अधीन होना (करना)। (किसी जगह )
-बरबाद या नष्ट करना। सूखे पानी में पानी भरना-पानी रुकना, अधीनता डूबना-भ्रम में पड़ना, धोखा खाना । स्वीकार करना, तुच्छ, होना । (आँखों का) मुहँ में पानी भर आना या छूटना- पानो मरना-लज्जा न रहना । पानी स्वाद लेने की इच्छा होना, अति लालच पतला करना-दुख देना, पीड़ा पहुँचाना, होना । रस, अर्क, जूस, छबि, कांति, जौहर, | दुखी करना । पानी सा पतला-अति श्राब, इज्ज़त-प्राबरू, शर्म, पानी सी द्रव तुच्छ, सूचम या साधारण । वस्तु, जल-रूप में सार अंश, मान, प्रतिष्टा। पानीदार-वि० (हि. पानी+दार फा०महा०-पानीउतारना --इज्जत उतारना. प्रत्य०) इज्जतदार, माननीय, साहसी, धार, अपमानित करना। पानी जाना - लज्जा बाद या चमकवाला : “पानीदार पारथया प्रतिष्ठा नष्ट होना या न रहना, इज्जत
सपूत की कृपानी-गत, पानीदार धार मैं जाना। (खिका) पानी जाना-लज्जा
विलीन बड़वागी है -श्र० ३० । न रहना। मरदानगी, हिम्मत, वर्ष, पानी देवा-वि• यौ० (हि० पानी + देवा = ( जैसे-पाँच पानी का बैल ), मुलम्मा, देने वाला ) पिंडदान या तर्पण करने वाला, वंशगत विशेषता या कुलीनता (पशुओं की)। वंशज । पानीरखना-मान-मर्यादा रखना । "रहि- पानीफल-संज्ञा, पु० यौ० (हि. पानी+ मन पानी राखिये, बिन पानी सब सून । पानी सं० फल ) सिंघाड़ा। गये न उबरे, मोती, मानुस, चून' महा0 पानीय-संज्ञा, पु. (सं०) पानी, जल । वि. पानी करना या कर देना--किसी का पीने के योग्य, रक्षा-योग्य । क्रोध मिटाना, चित्त शीतल करना, नष्ट या | पानूस -- संज्ञा, पु० दे० (फा० फानूस ) शिथिल करना । पानी निकालना-अति
फानुस । श्रमित या दलित करना जलवायु, श्राबहवा, पानौरा-संज्ञा, पु० दे० (हि० पान + बरा) पानी सी फीकी निःस्वाद वस्तु, बेर, इंद पान के पत्ते की पकौड़ी। युद्ध । महा-पानी लगना- जल-वायु पानप---वि• (सं०) बटोही, राही, यात्री। का उपयुक्त न होना, उससे स्वास्थ्य बिगड़ना।। पाप-संज्ञा, पु० (सं०) बुरा काम, कुकर्म, " लागै अति पहार कर पानी"-रामा० । पातक, अघ, पापी (विलो०-पुण्य, धर्म )। संज्ञा, पु० दे० (सं०पाणि) हाथ । बोले भरत | मुहा०—पाप उदय होना-बुरे प्रारब्ध या जोरि जुग पानी"-रामा० । संज्ञा, पु० संचित कुकर्मों या पापों का फल मिलना, पाप ( हि० ) कांति, धार, बाढ़ ( अनादि की) | कटना, पाप का नाश होना । पाप कटनामुहा०-पानी रखना (खड़ में)-- पाप का नाश होना, बखेड़ा या अनिच्छित बाढ़ या धार रखना । ( आँखों से ) पानी काम का दूर होना। पाप काटना-पाप श्राना ( गिरना )- आँखों से आँसू । मिटाना, पाप का बुरा फल भोगना । पाप गिरना । (आँखों में ) पानो पाना कमाना या बटोरना---पाप कर्म करना । (बहना, गिरना)- आँसू बहते रहना। पाप लगना--दोष या पाप होना, कलंक मुहा०-पानी न माँगना-तुरन्त मर । लगना । अपराध, पाप-बुद्धि, अनिष्ट, बुराई,
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