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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पाप-कर्म हित जुर्म, हत्या, वध, संकट | मुहा०पाप कटना - जंजाल छूटना, झगड़ा मिटना । पाप मोल लेना --- जान बूझ कर झगड़े में फँसना । पाप पड़ना - कठिन हो जाना, दोष होना । यो०- पापग्रह - मंगल, शनि, राहु केतु सूर्य चुरे ग्रहर (ज्य० ) 1 प-कर्म - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पाप का कर्म, कर्म, शुभ कार्य । पाय पापकर्मा - वि० यौ० ( सं० पाप कर्मन् ) पापाचारी, पापी, कुकर्मी । १११७ पावगण - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) ठगण का भेद (पिं० ) । पापन - वि० (सं०) पापनाशक, पापसूदन । पापचारी, पशचारी - वि० (सं० पापचारिन् ) पापी, पाप करने वाला । स्त्री० पापचारिणी । पापड़-पापर संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्पट) उर्द या मूँग की धोई दाल के आटे की मसालेदार पतली रोटियाँ | मुहा०-पापड़ बेलना - बड़ा परिश्रम करना, दुख या कठिनता से समय बिताना। बहुत से पापड़ बेलना --- धनेक प्रकार के काम कर चुकना । पापड़ा - संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्पट) एक पेड़, पित्तपापड़ा । पापदृष्टि - वि० यौ० (सं० ) बुरी पाप- पूर्ण दृष्टि हानि या श्रनिष्टप्रद दृष्टि । पाप नाशन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पाप का विनाश करने वाला, शिव, विष्णु, पापनाशक, पापनाशी, प्रायश्चित्त । पापयोनि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) पाप से मिलने वाली कीड़े या पशु-पक्षी की योनि । पायरोग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ( पापाचरणजन्य रोग जैसे यक्ष्मा, कुष्ट उन्माता. ग्रन्थत पीनप, छोटी माता, वसंत रोग । पापलोक - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) नरक । | मूकता यादि, पायंदाज पापहर - वि० पु० ( सं० ) पापनाशक । पापाचार - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पाप का श्राचरण, दुराचार | वि० पापाचारी । स्त्री० पापाचारिणी । पापात्मा - वि० यौ० ( सं० पापात्मन् ) दुष्टात्मा, पाप में अनुरक्त, पापी । "पापात्मा पाप-संभवः स्फु० । " सं०) बहुत बड़ा पापी । सं० पापिन् ) "6 वाला, अधी, नृशंस, निर्दय, परपीड़क राम तोर पापी" रामा० । (स्त्री०) पापिनी पापोश - संज्ञा, पु० यौ० ( फा० ) जूता । पावंद - वि० ( फा० ) पराधीन, वद्ध, क़ैद, प्रतिज्ञा-पालन में विवश | संज्ञा, स्त्री० पाबंदी | पाबंदी - संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) पावंद होने का भाव, क़ैद । पारिष्ट - वि० पाणी - वि० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाप करने पातकी, क्रूर, भ्राता बड़ पानड़ा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पाँवड़ा ) वा. बड़ों के रास्ते में विछाने का वस्त्र, यंदाज़ (फा० ) | पामर - वि० (सं० ) कमीना, नीच, मूर्ख, । माँ - रामा० । दुष्ट, पापी, खल, " नर पामर केहि लेखे "" पामरी - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्राबार ) दुपट्टा | ( हि० पाँचड़ी ) खड़ाऊँ । पासाल. पायमाल - वि० ( फ़ा० पा + माल = रौदना ) पददलित, चौपट, खराब बरबाद, तबाह | संज्ञा, खो० पामाली । For Private and Personal Use Only I पाय, पाँइ, पाय - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पाँव ) पाँव, पैर । " श्राज संसार तो पायँ मोरे परै " राम० । पायँ जेहरि * पायज़ेब ) पायजेब, पाजेब (दे० ) | --- संज्ञा स्त्री० दे० ( फा० पायँता- पंज्ञा, पु० दे० ( हि० पाँय + सं० स्थान ) पैंताना, (विलो०-सिरहना, उसीस, स्त्री० पायँती । पायंदाज - संज्ञा, पु० ( फा० ) पाँय पोछने
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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