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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - परजात २०७४ परदा परजात–वि० (सं०) दूसरे से उत्पन्न, दूसरे लागत । मुहा० --पड़ता पड़ना (खाना) का पला, दूसरी जाति का।। --पूरा मूल्य प्राजाना।। परजाता-संज्ञा, पु० दे० (सं० पारिजात) | परताप* -- संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रताप) प्रताप, पारिजात वृक्ष, हर-सिंगार, पारजात। तेज, इकबाल । वि० परतापी । परजाय%-संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्याय) परताल-परतार-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पड़समान या तुल्य अर्थ वाले शब्द, एक अलं- ताल) पड़ताल, जाँच । "पातक अपार परकार, परम्परा प्रकार यौ० । दे० (सं० पर+ तार पार पावैगी"- रत्ना० । जाय) पर स्त्री, परजोय, परजाया। परतिचा* --- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रत्तंचिका) परजारना-स० क्रि० दे० (हि. परजरना) धनुष की डोरी, प्रत्यंचा। जलाना । परती-पड़ती--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. परना == परजौट--संज्ञा, पु० दे० (हि० परजा---ग्रौट पड़ना) वह भूमि जो बिना जोती-बोई -प्रत्य०) मकान बनाने के हेतु वार्षिक पड़ी हो। भाड़े पर भूमि के लेने-देने का नियम। परतोत-परतीति*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० एरज्वलना-२० क्रि० दे० (सं० प्रज्वलन)। प्रतीति) प्रतीति. विश्वास, भरोसा । "भूलि प्रज्वलित करना, जलाना । अ० कि. (दे०) । परतीति न कीजै"--गिर। प्रज्वलित होना । " देखन ही तें परज्वलै, | परतेजना::-- सं० कि० दे० (सं० परित्यजन) परसि करै पैमाल'---कवी० । छोड़ना, परित्याग करना। परणना*---क्रि० स० दे० (सं० परिणयन) परत्र - वि० (सं०) अन्यत्र, स्वर्ग, परकाल या परलोक । विवाह करना, व्याहना ! परत्व-संज्ञा, पु० (सं०) प्रथम या पूर्व होने परतंचा-परतिचा --- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० का भाव, श्रागे होने का भाव।। प्रतंचिका) धनुप की डोरी, प्रत्यंचा। परथन, परेथन-संज्ञा, पु० दे० (हि० पलेशन) परतंत्र-वि० (सं०) पराधीन, परवश । पलेथन गीले आटे से रोटी बनाने में लगाने परतंत्रता-संज्ञा, स्त्री० (स०) पराधीनता। का सूखा आटा, व्यर्थ का व्यय या खर्च, परतः-अ० (सं० परतस्) अन्य या दूसरे से, परोथन । पीछे, भागे। परदच्छिना*-संज्ञा, स्त्री०दे० (संप्रदक्षिणा) परत-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पत्र) तह, स्तर, प्रदक्षिणा, परिक्रमा। छिलका, पुट । परदनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० परदा, धोती परतच्छ-परनछ---- वि० दे० (सं० प्रत्यक्ष) 'टका परदनी देतु" कवी। प्रत्यक्ष, संमुख, प्रगट, घाँखों के आगे। "हम परतिग्या-परतिज्ञा-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० परतच्छ मैं प्रमान अनुमानै नाहि"-ऊ. श० । । प्रतिज्ञा) प्रण, पण, प्रतिज्ञा। परतल-संज्ञा, पु० दे० (सं० पट+ तल) डेरा परदा-संज्ञा, पु. ( फा० ) पट, चिक, यवडंडा, टट्टू या घोड़े पर लादने का गोन या निका, पर्दा । मुहा०-परदा उठाना या बोरा, खुरजी (ग्रा०)। खोलना-गुप्त भेद या छिपी बात प्रगट परतला--संज्ञा, पु० दे० (सं० परितन) चप- करना । परदा डालना-छिपाना । रास, चपरास लगाने की पट्टी। परदा रखना-लज्जा रखना, इज्जत परता-पड़ता--संज्ञा, पु. दे० (हि० पड़ता) बचाना । परदा फाश करना-भेद या किसी वस्तु का मूल्य, खरचे का दाम, लज्जा की बात प्रगट करना। आँख पर For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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