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परघट
१०७४
परजा
परघट -वि० दे० (सं० प्रकट) प्रकट, | परछन-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० परि+अर्चन) जाहिर, पैदा। "जाहिर परघट तादीर- द्वार पर आये वर की आरती "परछन करत पाक "-खालिक ।
सुदित मन रानी".--रामा० । परधनी-परघरी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) सोना- परछना-क्रि० स० दे० (हि० परकन) किसी
चाँदी आदि के ढालने का साँचा या परधी। | देवता या वर की भारती या पूजन करना । परगहनी-(ग्रा०) संज्ञा, पु० यौ० (दे०) | परछाई-परछाहीं-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० दूसरे का घर, परघर, पर-स्त्री, परगृहणी प्रतिच्छाया)छाँही, शाह, छाया साया, प्रति(सं०), परघरनी (दे०)
विम्ब । “जल विलोकि तिनकी परछाही'-- परचंड*-वि० दे० सं० प्रचंड अधिक तेज़ रामा० । मुहा०-परछाई से डरना या
या तीब्र, प्रखर भयंकर, कठोर असह्य, भागना--पास तक जाने से डरना, बहुत बड़ाभारी।
ही डरना । परचइ-परचै-संज्ञा, पु० दे० (सं० परिचय)
परछालना*-स० कि० दे० ( सं० प्रक्षलन ) परिचय, जानकारी, पहिचान, परचौ(ग्रा०)। धोना । परचत -संज्ञा, स्त्री० दे० (संज्ञा, परिचित) परछिद्र-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) परदोष, जान पहिचान जानकारी, परिचय, परचित।।
दूसरे का ऐब | "जो सहि दुख परछिद्र परचना-प्र. क्रि० दे० (सं० परिचयन) हिलना, मिलना, चसका लगना। परछी-- संज्ञा, स्त्री० (दे०) दूध या दही की परचा–संज्ञा, पु. (फा० ) काग़ज़ का मटकी।। टुकड़ा, चिट, पुरजा, चिट्ठी, परीक्षा का प्रश्न- परजंक-संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्यक) पलंग, पत्र । संज्ञा, पु० (सं० परिचय) परिचय, प्रजंक (दे०)। परीक्षा, प्रमाण ।
परज-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पराजिका) एक परचाना स० कि० दे० (हि. परचना) । रागिनी ( संगी० )। परचावना, चसका लगाना, टेंव डालना, परजकर -- संज्ञा, पु० (दे०) वह महसूल जो हिलाना-मिलाना । स० क्रि० दे० (सं० प्रज्च- भूमि में बसने से ज़मींदार को दिया जावे । लन) जलाना, सुलगाना।
परजन*---संज्ञा, पु० दे० (सं० परिजन) परचार* --संज्ञा, पु० दे० सं० प्रचार) कुटुम्बी, वंश के लोग नौकर, सेवक । "परप्रचार, रिवाज़, चलन ।
जन, पुरजन, मित्र, उदासी"--- स्फु० । परचारना*-क्रि० स० दे० (सं० प्रचारण) | परजरना* -- अ० कि० दे० (सं० प्रज्वलन) प्रचारना, ललकारना ।।
सुलगना, जलना, रुट होना, डाह करना, परचून-संज्ञा, पु. द. (सं० पर-+- चूर्ण) , कुढ़ना। भाटा दाल आदि की सामग्री।
परजन्य* --- संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्जन्य) मेघ, परचूनी-संज्ञा, पु० दे० (हि० परचून) खाने । बादल, जलद वारिद । “परकारज देह को
की सामग्री बेचने वाला बनिया, मोदी। धारे फिरौ परजन्य जथारथ है दरसौ"-घना० परचौ-संज्ञा, पु० दे० (सं० परिचय) परीक्षा, परजघट-संज्ञा, पु० (दे०) कर, शुल्क, भाड़ा जाँच, परिचय ।
राज-भूमि का महसूल । परछती-परछत्ती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० परजा--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रजा) प्रजा, परि-+छत ) कोठरी में थोड़ी दूर तक की रिपाया, रैयत, अासामी, किसान, सेवक, पटनई, फूस का छोटा छप्पर ।
नौकर, दास ।
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