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परकार १०७३
परगास परकार-संज्ञा, पु० ( फा०) वृत्त खींचने | परखना-स. क्रि० दे० (सं० परीक्षण) का यंत्र।। संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रकार) तरह, परीक्षा ( जाँच या अनुसंधान या खोज) प्रकार, भाँति ।
करना, देखभाल करना, पहचानना । स० परकारमा-स० कि० दे० ( हि० परकार ) क्रि० हि० (दे० परेखना) आरा देखना, परकार के द्वारा वृत्त खींचना, चारों तरफ प्रतीक्षा या इन्तज़ारी करना । घुमाना।
परखवाना-स० कि० हि० (परखना का प्रे. परकाल-संज्ञा, पु० दे० ( फा० परकार ) | रूप) ऊंचवाना, अनुसंधान करवाना, प्रतीक्षा परकार, प्रकार ।
कराना। परकाला-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्राकार या | परखवैया--संज्ञा, पु० दे० (हि. परख+ प्रकोष्ट) जीना, सीढ़ी, चौखट । संज्ञा, पु० दे० | वैया - प्रत्य०) परखने, जाँच या अनुसंधान (फ़ा० परगला) खंड, भाग, काँच का टुकड़ा, करने वाला, इन्तज़ारी करने वाला।
आग की चिनगारी । मुहा०--आफ़त का | परखाई.--- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० परखाना) परकाला= ग़जच ढहाने वाला, श्राफ़त | परखने का काम या मजदूरी, इन्तज़ारी । उठाने वाला, भयानक या प्रचंड मनुष्य। परखाना-स. कि० दे० (हि० परखना) परकास-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रकाश ) | अँचाना, परीक्षा कराना, इन्तज़ारी कराना। प्रकाश, उजेला।
परखो - संज्ञा, स्त्री० (दे०) सूजे के तुल्य एक परकासना -स० क्रि० दे० (सं० प्रकाशन)
लोहे का यंत्र, जिससे बोरे से अन्न निकाल उजेला करना, प्रगट करना।
कर परखा जाता है। परकिति-परिकीति-परकीती ---संज्ञा, परखैया-संज्ञा, पु. (हि० परखना +-ऐया स्त्री० दे० (सं० प्रकृति) प्रकृति, स्वभाव, टेव, प्रत्य०) परखने या जाँच करने वाला, खोजी श्रादत । "हम बालक अज्ञान अहैं प्रभु, | इन्तज़ार करने वाला। अति चंचल परकीती"---प्र० ना० मि०। पग-संज्ञा, पु० दे० (सं० पदक) पग, डग । परकीय-वि० (सं०) दूसरे का, पराया।
परगट-वि० दे० (सं० प्रकट) प्रगट, स्पष्ट, परकीया--- संज्ञा, स्त्री० (सं०) दूसरे की स्त्री, परघट (ग्रा०)। पति को छोड़ पर पुरुष से प्रेम करने वाली परगटना*-अ. क्रि० दे० (सं० प्रकट) नायिका । (विलो०-स्वकीया ) " पर- प्रगट होना, खुलना। क्रि० स० (दे०) जाहिर कीया पर नारि ।' मतिः।
या प्रगट करना। परकीरति-परकीति-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० परगन-परगना-संज्ञा, पु० दे० (हि. परकीर्ति) दूसरे का यश, नेकनामी, बड़ाई। परगना) परगना, तहसील का वह भाग " तुलसी निज कीरति चहैं, पर-कीरति को जिसमें बहुत से गाँव हों, (सं० प्रगण )। खोय"-तुल०।
परगसना*-अ० कि० दे० (सं० प्रकाशन) परकोटा-स्त्री० पु० दे० (सं० परिकोट ) प्रगट या प्रकाशित होना । स० क्रि० (दे०) किसी गढ़ या किले के चारों ओर का रक्षक, परगासना। घेरा, बाँध, चह, धुस।।
परगाछा--संज्ञा, पु० दे० (हि. पर+गाछ = परख-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० परीक्षा) परीक्षा, | पेड़) दुसरे पेड़ों पर उगने वाले पौधे, (गरम जाँच, भलीभांति देख-भाल, पहिचान, अनु- देशों में)। संधान, खोज, पारिख (ग्रा.)। वि. परगास -संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रकाश) पारखी।
। प्रकाश, उजेला, रोशनी। भा० श० को०-१३५
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