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पयस्विनी १०७२
परकाना पयोनिधि) सागर । "वाँध्यो पनिधि, तोय- परंदा- संज्ञा, पु. द० ( फा० परिंदा ) पक्षी निधि, उदधि, पयोधि नदीश-रामा० । । चिड़िया, परिंदा। पयस्विनी- संज्ञा, स्त्री. (सं०) दूध देने परंपरा--संज्ञा, स्त्री. (सं.) क्रम से एक वाली गाय, एक नदी।
के पीछे दूसरा, पूर्वापर क्रम, अनुक्रम, पयस्वी-वि० (सं० पयस्विन् ) जल-वाला,
वंश-परंपरा, प्रणाली, संतति, औलाद, दृधवाला, दूध-युक्त । ( स्त्री० पयस्विनी ।
परिपाटी, प्राचीन रीति। पयहारी-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० पयस् +
परंपरागत-वि० यौ० ( सं० ) जो सदा से आहारी) केवल दूध पीकर रहने वाला,
होता श्राया हो, सनातन। तपस्वी, साधु, पयसाहारी। पयान-पयाना-संज्ञा, पु० दे० (सं० पयाण )
पर-वि० (सं०) दूसरा, अन्य, पराया, यात्रा. गमन, जाना । "प्रान न करत पयान
दूसरे का, जुदा, अलग, भिन्न, अतिरिक्त, श्रभागे".-रामा०।
पीछे का दूर, तटस्थ, श्रेष्ठ, तत्पर, लीन । पयार-पयाल-संज्ञा, पु. दे. (सं० पलाल) पत्य० दे० (सं० उपरि ) भाषा में अधि. धान आदि के छ छे और सूखे डंठल, पुवाल करण का चिन्ह, जैसे-कोठे पर। अव्य. (दे०)। " सहना छिपा पयार-रत को कहि (सं० परम् ) पीछे, पश्चात्, परंतु, किंतु, वैरी होय "-कबीर । मुहा०-पयाल लेकिन, मगर, तो भी । संज्ञा, पु. (फा०) गाहना या झाड़ना-व्यर्थ परिश्रम या चिड़ियों का पंख. पखना, डैना, पक्ष । सेवा करना । पयाल तापना-निस्सार | मुहा०-पर कट जाना-निर्बल या शक्तिकार्य करना।
हीन या असमर्थ हो जाना। पर जमनापयोज-संज्ञा, पु. ( सं०) कमल । पंख निकलना, शरारत सूझना । कहीं जाते पयोद-संज्ञा, पु. (सं०) बादल, मेघ । हुए पर जलना-साहस या हिम्मत न "उनयो देखि पयोद" वृ०।।
होना, गति या पहुँच न होना । पर नपयोधर- संज्ञा, पु० (सं०) स्तन, थन, मारना-पाँव न रखना, न पाना । बादल, नागरमोथा, कसेरू, तालाब, गाय | परई- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पार = कटोरा) का श्रायन, पहाड़। दोहा का ११ वाँ और दिया से बड़ा मिट्टी का एक पका बरतन । छप्पय का २७ वाँ भेद ( पिं० ) “ लगी | परकटा*---वि• यौ० दे० (फा० पर+काटना पयोधर जोंक-बृ. ।
हि०) जिसके पंख या पखने कट गये हों। पयोधि-संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र ।।
परकना * +-अ० कि० दे० (हि० परचना) पयोनिधि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समुद्र।
परचना, हिलना, चसका लगाना, अभ्यास या "जो छवि सुधा-पयोनिधि होई"-रामा०।
व पड़ना । स० कि. (प्रे० रूप) परकाना । पयोव्रत -संज्ञा, पु. यौ० (सं०) दूध या जल के श्राहार पर व्रत करना, या ऐसा व्रत
परकसना* --- अ. क्रि० दे० (हि० परकासना) करने वाला।
प्रगट या प्रकाशित होना, जगमगाना। पयोराशि-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) समुद्र ।। परकाज, परकारज-संज्ञा, पु० दे० ( स० परंच-अव्य० (सं०) लेकिन, परन्तु, तो भी। परकायं) दूसरे का काम परोपकार । परंतप-( वि. यौ० (सं० ) वैरियों को परकाजी-वि० दे० (हि० पर+ काज+ दुख देने वाला, इन्द्रियजित ।
ई. प्रत्य० ) परोपकारी, परस्वार्थी । परन्तु-अव्य० (सं० परं +-तु) मगर, लेकिन परकाना 8-स० क्रि० दे० (हि० परकना किंतु, पर, तोभी।
। अभ्यास डलवाना, चस्का लगाना, परचाना।
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