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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पपड़ा, पपरा - संज्ञा, पु० दे० (सं० पपेट) लकड़ी का सूखा छिलका, रोटी का छिलका । स्त्री० अल्पा० । पपरी, पपडी । पपड़ियाँ - संज्ञा, स्त्रो० दे० ( हि० पपड़ी) छोटा पपड़ा, पपड़िया कत्था | संज्ञा, पु० दे० (हि० पपड़ी - कत्था ) - सफेद पपड़ीदार कत्था । पपड़ियाना - अ० क्रि० दे० ( हि० पपड़ी + माना ) किसी पदार्थ के ऊपरी परत का सूख कर सिकुड़ जाना, पपड़ी पड़ जाना । पपड़ी - पपरी -- संज्ञा, स्रो० दे० ( हि० पपड़ा का पा० ) किसी पदार्थ के ऊपरी परत का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्नग १०७१ NOT MANAG VETERA सूखकर जगह जगह से फटा भाग एक पकवान, पपरिया (दे०) । पन्नगेश, पन्नगाधीश । पन्नग - संज्ञा, पु० (सं०) साँप, सर्प, पद्माख औषधि । (स्त्री० पन्नगी ) पन्नगपति-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शेष नाग । पपड़ीला, पपरीला - वि० दे० ( हि० पपड़ा + ईला प्रत्य० ) अधिक पपड़े वाला । पपनी -- संज्ञा, त्रो० (दे०) बरौनी, बरोनी 1 पपी - संज्ञा, पु० (सं० ) सूर्य, भानु, रबि । पपीता - संज्ञा, पु० (दे०) अंड - खरबूज़ा | स्त्री० पपीती । Si ' पन्नगारि यह नीति अनूपा 99 6: पन्नगारि - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) गरुड़, - ( रामा० ) । पन्नगाशन -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) गरुड़, 'सुनहु पन्नगाशन यह रीती -रामा० । पन्नगी - संज्ञा, खो० (सं०) साँपिनी, सर्पिणी, नागिनी । "हली जाति पन्नगी हरीरे परबत पै - " लहि० । पपीहा, पपिहा, पपीहरा - संज्ञा, पु० (दे० ) चातक पक्षी । " पीहा पीहा रटत पपीहा मधुवन में -- ॐ० श० । "" पपैया - संज्ञा, पु० (दे०) एक खिलौना, थंडखरबूजा, पपीहा, एक पक्षी । 16 पन्ना - संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्ण ) मरकत मणि, हरित मणि, वर, पृष्ठ, एक नगर जहाँ हीरों की खान है, पन्ना मांहि पन्ना की सुचौकी पै उपन्ना श्रदि, पन्ना गेय गीता को सो मन्ना उलटा है" । पना पपोदा- संज्ञा, पु० दे० (सं० प्र + पट पलक, चल, पलक । पन्नी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पन्ना: = पत्रा ) कागज़ के समान राँगा या चाँदी आदि के पत्तर, सोने यादि के पानी से रँगा काग़ज़ | संज्ञा स्त्री० दे० (हि० पना) एक खाने योग्य वस्तु | संज्ञा, स्त्री० (दे०) वारूद की एक तौल | पन्नीसाज-संज्ञा, पु० दे० ( हि० पन्नी + फ़ा० साज़ ) पन्नी का काम करने वाला | संज्ञा, स्त्री० - पन्नीसाज़ी | पन्हाना +- अ० क्रि० दे० ( हि० पहनना ) पहनाना, पिन्हाना, पल्हाना | पयनिधि पपोरना -- स० क्रि० (दे०) भुजा ऐंठना और अभिमान सहित उनका पुष्ट उभाड़ देखना । पवनी - संज्ञा स्त्री० (दे०) त्यौहार, पर्वणी ( सं० ) । पनि - संज्ञा, पु० (दे०) पवि या वज्र । पवरना - अ० क्रि० (दे० ) निर्वाह, होना, काम चलना | संज्ञा, स्त्री० (दे०) पर्व या त्योहार का दिन | पव्यय - संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्बत) पहाड़ | कुंजर उप्पय सिंह, सिंह उप्पै पन्वय, — रासो० । 66 ,, पमार - संज्ञा, पु० दे० ( हि० परमार ) पवार (ग्रा० ) क्षत्रियों की एक जाति । पय- संज्ञा, पु० दे० (सं० पयस् ) दूध, पानी । बढ़े गरल बहु भुजग को, यथा किये पय पान " - वृ० । For Private and Personal Use Only to पयद* - संज्ञा, पु० दे० ( सं० पयोद ) स्तन, थन, बादल । श्रवत पयद, लोचन जल छाये, ". पयधि - संज्ञा, पु० दे० (सं० पयोधि ) समुद्र | पर्यानिधि - संज्ञा, पु० दे० यौ० (स० ---शमा० ।
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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