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परदादा १०७६
परनि परदा पड़ना-देख न पड़ना। ढंका । परद्वष्टा-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) परहिंसक, परदा-छिपा दोष या कलंक, बनी मर्यादा परानिष्टकारी, दूसरे की हानि करने वाला । या प्रतिष्ठा , व्यवधान, श्रोट, आड़, छिपाव परदाह ---- संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) परानिष्ट, यौ०-परदा-प्रथा-स्त्रियों के अंदर रहने दूसरे का अशुभ, पर-पीड़न । "न शक्नोमि
और मुख ढाँके रखने का रिवाज : मुहा०- बर्तु परद्रोह लेशम् -शं०। परदा रखना-परदे की ओट में रहना, परद्रोही-वि० यौ० (सं० परद्रोहिन् ) पराछिपाव या दुराव रखना, परदे के भीतर निष्टकारी, पराशुभकारी, परपीड़क । रहना, लज्जा रखना । परदा होना-परदा । परधन-संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) अन्य या होने का नियम या दुराव होना । परदे में दूसरे का धन या द्रव्य । लो०-"परधन रहना-छिपा रहना।।
बाँधै मूरख-नाथ" -- स्फु० । परदादा-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्र-+-हि.
परधान*-वि० दे० (सं० प्रधान ) मुख्य, दादा ) दादा का पिता, प्रपितामह । स्त्री० श्रेष्ठ, मंत्री । संज्ञा, पु० दे० (सं० परिधान) परदादी।
आच्छादन, परिधान, वस्त्र, कपड़ा। संज्ञा, परदा-नशीन-वि० यौ० (फा० ) परदे में
पु. यो० दे० (सं०) पर-धान्य का स्थान । रहने वाली अंतः पुर वासिनी। संज्ञा, स्त्री०
परधाम-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वैकंठ, स्वर्ग, (फा०) परदा-नशीनी।
परमात्मा, अन्य का धाम, परमधाम । परदार-परदारा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० )
परन-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रण) प्रतिज्ञा, परतिया दूसरे की स्त्री, पराई औरत । वि० ।
ग्रण, टेक, हठ संज्ञा, स्त्री० दे० हि० पड़ना) यौ० परदार-लंपट-पर-स्त्री गामी ।
स्वभाव, वान, टेव, पादत । *संज्ञा, पु० दे० " माता सम परदार अरु, माटी सम पर
(सं० पर्ण ) पर्न (दे०) पान, पत्ता, पत्ती। दाम।" संज्ञा, स्त्री० परदार-लंपटता।
जैसे-परनकुटी। परदाराभिगमन- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) व्यभिचार । वि. यौ० (सं०) परदाराभि
परनगृह-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं०) पर्णगृह,
पत्तों का झोंपड़ा, प्रणशाला (सं० ) परनगामी-परतियगामी। परदुःख-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) अन्य की
साला, परनकुटी, पर्णकुटीर (दे०)। पीड़ा या क्लेश, परदुख ।
परला,पड़ना*-० क्रि० दे० (हि० पड़ना) परदुम्भ*-- संज्ञा, पु० दे० (संप्रद्युम्न) प्रद्युम्न,
गिरना, पड़ना, सो रहना, लेटना। श्री कृष्ण जी के पुत्र।
परनाना - संज्ञा, पु० दे० (सं० पर+हि. परदेश, परदेस- संज्ञा, पु० यौ० (सं० )
नाना ) नाना का पिता। स्त्री० एरनानी । विदेश, अन्य देश, भिन्न देश ।
परनाम-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० परनामन) परदेशी, परदेसी-वि० (सं० ) दूसरे देश
अन्य या दूसरे का नाम, दूसरा नाम । संज्ञा, का, विदेशी, अन्य देशवासी।
पु० दे० (सं० प्रणाम ) प्रणाम, नमस्कार । परदोस*-संज्ञा, पु० दे० सं० प्रदोष ) परनाला-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रणाली) शाम का वक्त, संध्या समय, त्रयोदशी का नाबदान, मोरी, पनाल, नरदवा, नर्दहा । शिव-व्रत, बड़ा भारी दोष या अपराध ।
( स्त्री. अल्पा० परनाली)। संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० परदोष ) अन्य या परनाह-~-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० पर+ दूसरे की बुराई । यौ० " जे परदोस लखें। नाथ ) परपति, पर-नाथ । सहसाखी"-रामा ।
| परनि*- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पड़ना)
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