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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir NA निधनी १००८ निपीड़ना निधनी-वि० दे० (हि. नि | धनी) निर्धन, निपजना-अ० कि० दे० (सं० निष्पत्तते) कंगाल ।"देखत ही देखत कितके निवनी के | उगना, उपजना, बढ़ना, पकना । धन -अ०व०। निपजी* -- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० निपजना ) निधान - संज्ञा, पु० (सं०) श्राश्रय, श्राधार, लाम, उपज । निधि, लयस्थान, कोष ! निपत्र-वि० दे० (सं० निष्पत्र) टूंठ, पत्रहीन । निधि-संज्ञा, स्त्री. (सं०) खजाना, कोष निपट- अन्य० दे० (हि. नि+पट) केवल, नौ निधियाँ, समुद्र, स्थान, घर, विष्णु सिफ़', निरा एकमात्र, बिलकुल । "निपट शिव, नौ की संख्या। निरंकुस अबुध असंकू'-रामा० . निधिनाय, निधिपति-संज्ञा, पु० यौ० निपटना अ. क्रि० दे० (सं० निवर्तन) (सं०) निधियों के स्वामी. कुबेर । फुरत या छुट्टी पाना, निवृत्त या समाप्त निनरा--- वि० दे० ( सं० निः + निकट प्रा० । होना, निर्णित या तै होना : निनिअड़ ) अलग, जुदा, न्यारा, दूर ! निपटाना-स० क्रि० दे० (सं० निवर्तन) निनाद-संज्ञा, पु० (सं०) आवाज़, शब्द।। चुकाना, निर्णित करना ! एंज्ञा, पु० निप निनादी-वि० (सं० निनादिन् ) शब्द करने टाग,निपटाघ । वाला : स्त्री०निनादिनो । वि. निनादितः निपटेग-संज्ञा, पु० दे० ( हि० निपटाना) निनान* -- संज्ञा, पु० दे० ( सं० निदान ) । निर्णय, फैसला, समाप्ति, छुट्टी, निपटारा। लक्षण, अन्त । क्रि० वि० (दे०) आखिर में, निपतन - संज्ञा, पु० (सं०) गिरना, अधःपतन अन्त में । वि० (दे०) हद दरजे का, बिल गिराव । (वि. --निपति', निपतनीय)। कुल, एकदम बुरा, नीच । निपाटना-- स० कि० (दे०) काट देना समाप्त निनार-वि० (दे०) बिलकुल न्यारा, करना । अकेला, निकला (ग्रा० प्रान्ती.) निपात-संज्ञा, पु. (सं०) गिराव, पतन, निनारा-- वि० (सं० निः -- निकट) जुदा, | नाश, मृत्यु, बिना नियम के बना शब्द । भिन्न, अलग, दर । स्त्री. निनारी ननद वि० दे० ( हि० नि- पता ) विना पत्तों का। निनारी सास माइके सिधारी',-स्फ। निपातन-संज्ञा, पु० (सं०) मारने या गिराने निनावा--संज्ञा, पु० दे० ( हि० नन्हा ) मुँह का काम, नाश, नीचे गिराना। वि० -- के भीतर निकलने वाले छोटे छोटे दाने । निपातनीय, निपातित । निनाना-स० कि० दे० (हि. नवना = निपातना-स० कि० (दे०) नष्ट करना, काट झुकना) झुकाना, लचाना, नवाना। गिराना, मार डालना । 'सहि निपाते निनानब, निन्यानबे- वि० दे० (सं० नवन राम'-रामा० । वति) नब्बे और नौ। संज्ञा, पु. (दे०) नब्बे निपाती-- वि० दे० सं० निपातिन ) गिराने, और नौ की संख्या मुहा० - निन्नानवे के | फेंकने य मारने वाला । वि. निपातित। फेर में आना (पड़ना) -- धन जोड़ने की संज्ञा, पु० (सं०, शिव जी। वि० दे० (हि. फिक्र या धुनि में पड़ना, चक्कर में पड़ना । नि+पाती) बिना पने का। निनाना* -- स० क्रि० दे० (सं० नवन) निपीड़क-वि० (सं०) पेरने वाला। लचाना, झुकाना, नवाना। निपीड़न- संज्ञा, पु० (सं०) दुख या कष्ट निन्यारा*--वि० दे० ( हि. निनारा ) जुदा, देना, पेरना, दबाना, मलना। वि.निपीपृथक, भिन्न, दूर। डित। वि.निपीडनीय । निपंग* --- वि० दे० (सं० नि :- पंगु ) अपा- निपीड़ना --स० कि० द. ( सं० निपीड़ा) हिज, लँगड़ा लूला, अपंग (दे.) । दवाना, मलना, पेरना कट या दुख देना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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