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विभ
२००७
निधन निथंभ -संज्ञा, पु० दे० (सं० नि+स्तंभ) निदलन-संज्ञा, पु० दे० (सं० निर्दलन) खम्भा।
निर्दलन, दलना, नाश करवा । निथरना-प्र० कि० दे० (हि. नि+थिर+ | निदहना*-स० क्रि० दे० (सं० निदहन ) ना-प्रत्य० ) पानी आदि द्रव पदार्थों का जलाना। स्थिर होना. जिससे उसमें घुली वस्तु नीचे | निदाघ-संज्ञा, पु० (सं०) ग्रीष्मऋतु, गरमी, बैठ जावे और द्रव वस्तु साफ हो जावे।
द्रव वस्तु साफ हो जावे। धाम, धूप । “जगत तपोवन सो कियो निथरा-वि० दे० (हि. निथरना ) स्वच्छ, निर्मल, साफ, उज्वल पानी आदि।
निदान-संज्ञा, पु० (सं०) श्रादि या मूल निथार-संज्ञा, पु० दे० (हि. निथारना )
कारण, रोग का निर्णय या लक्षण, अंत, साफ पानी, पानी में नीचे बैठी वस्तु ।।
नाश । अव्य० (सं०) अन्त में, आखिरकार, निथारना-स० क्रि० दे० (हि. निथरना)
"कलो भूप जनि करसि निदानू"--रामा । पानी धादि द्रव पदार्थ को ऐसा स्थिर करना | वि०निकृष्ट, नीच ।
नो निदारुण-वि० (सं०) कड़ा, कठोर, भयंकर, को साफ करना, थिराना (ग्रा.)।
दुःसह, निर्दय । निर्दई-वि० दे० (सं० निर्दय) दया-रहित, निर्दय ।
निदाह-संज्ञा, पु० (सं०)निदाघ, गरमी, ग्रीष्म। निदग्धिका- संज्ञा, स्त्री. (सं०) श्वेत, छोटी
निदिध्यासन-संज्ञा, पु. (सं०) बारम्बार
ध्यान या स्मरण, परमार्थ-चितन । चटाई। निदरना*-स० कि० दे० (सं० निरादर )
निदेश-संज्ञा, पु० (सं०) आज्ञा, शासन,
हुक्म, कथन, अनुमति, नियोग, अनुशासन, तिरस्कार, अपमान या अनादर करना,
__ "कीन्हेसि मोर निदेश निगेटू"-प्र० । त्यागना, मात करना, बढ़ कर निकलना ।
निदेस--संज्ञा, पु. ( सं० निदेश ) आज्ञा, पू० का० क्रि०-निदरि। निदरहि-स० क्रि० दे० (हि० निदरना) | शासन, अनुमति, नियोग, कथन । अनादर या अपमान करें, न माने, प्रतिष्ठा
निदोष -वि० (सं० निर्दोष) निषि, शुद्ध, न करें । “जो हम निदरहिं विप्र वदि, सत्य
| निर्मल ।
निद्धि-संज्ञा, स्त्री० (सं० निधि, निधि हैं। सनो भृगुनाथ"-रामा० ।। निदरि-स. क्रि० पूर्व. का. (हि. निदरना) |
निद्र- संज्ञा, पु० (सं०) एक हथियार। अनादर या अपमान कर के, निन्दा कर के ।
निद्रा- संज्ञा, स्त्री० (सं०) नींद, स्वान, सुप्ति, "निदरि पवन हय चहत उड़ाना।"-रामा०
__ "प्रभाव प्रत्ययालंबनावृत्तिनिद्रा"- योग। निदर्शन- संज्ञा, पु० (सं०) उदाहरण, दृष्टांत ।
निद्रायमान--वि० (सं०) जो सो रहा हो। निदर्शन-पत्र-संज्ञा, पु. यो० (सं०) दृष्टांत- निद्रालु-वि० (सं०) सोने वाला, निद्राशील । पत्र, उदाहरण-पत्र ।
निद्रित-वि० (सं०) सोया हुआ। निदर्शन-मुद्रा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मान निधड़क निधरक-वि० क्रि० दे० (हि. नि या प्रतिष्ठा-सूचक मुद्रा।
= नहीं + धड़क) बेखटके, निश्चिन्त । वि. निदर्शना- संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक अलंकार (दे०) उत्साही, साहसी, उद्योगी। जिसमें एक बात दूसरो की पुष्टि करती है, निधन-संज्ञा, पु० (सं०) मरन, मरण, नाश, "सरश वाक्य युग अर्थ को करिये एक अरोप। वंश, कुल, वंश का स्वामी, विष्णु । वि. भूषण ताहि निदर्शना कहत बुद्धि के प्रोप।। (दे०) कंगाल, निर्धन, दरिद्र ।
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