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अनुकंपा
५ - बरंबार जैसे अनुशीलन आदि का अर्थ देता है - अतः इसका अर्थ है, पीछे, पश्चात, सह, सादृश्य, लक्षण, वीप्सा, इत्थम्भाव, भाग, हीन, आयास समीप,
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परिपाटी, अनुसार, अधीन, अव्य०३. हाँ, ठीक, क्रि० वि० अब, आगे, छाथ, अनुरागी तुम गुरु वह चेला " - प० । अनु पाँडे पुरषहिं का हानी" -- प० । (सं० अणु ) वि० अत्यन्त छोटा, महीन, लघुतम, कम, थोड़ा, संज्ञा, पु० (सं० ty ) करण, परिमाणु । अनुकंपा - संज्ञा स्त्री० (सं० ) दया, कृपा, अनुग्रह, सहानुभूति, हमदर्दी, करुणा, स्नेह | अनुकंपित - वि० (सं० ) जिस पर दया की गई हो, अनुगृहीत, अनुग्राह्य, कारुणिक, वेगवान | अनुकंप्य - वि०
( सं )
अनुग्राह्य,
कृपापात्र ।
अनुकथन -- संज्ञा, पु० (सं०) कहने के बाद कहना, पश्चात कथन बारम्बार कथन, पारस्परिक वार्तालाप, अनुकूल कथन, पुनरुक्ति करना ।
अनुकरण - संज्ञा पु० (सं० ) देखादेखी कार्य, नकल, वह जो पीछे उत्पन्न हो या आवे, प्रतिरूप करण, अनुरूप या सदृश करण, उतारना । अनुकरणीय वि० ( सं० ) अनुकरण करने के योग्य ।
अनुकर्ता -- संज्ञा, पु० (सं० ) अनुकरण या नक़ल करने वाला, श्रज्ञाकारी, नकलची, स्त्री० [अनुकर्त्री ।
अनुकर्षा – संज्ञा, पु० (सं० ) श्राकर्षण, खींच-तान ।
अनुकार -- संज्ञा, पु० (सं० ) अनुकरण | अनुकारी -- वि० (सं० अनुकारिन् ) अनुकरण करने वाला, नक़ल करने वाला, • श्राज्ञाकारी । स्त्री०, अनुकारिणी । भा० श० को०
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अनुक्रमणिका
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अनुकू - वि० (सं० ) मुधाफ़िक़, पक्ष में रहने वाला, अनुसार, सहायक, प्रसन्न, सदा रहैं अनुकूल " संज्ञा, पु० वह नायक जो एक ही विवाहिता स्त्री में अनुरक्त हो, एक प्रकार का अलंकार जिसमें प्रतिकूल से अनुकूल वस्तु की सिद्धि दिखलाई जाती है, ( काव्य शास्त्र ) क्रि० वि० तरफ़, श्रोर " चली बिपति बारिधि अनुकूला
रामा० ।
अनुकूलता संज्ञा स्त्री० (सं० ) प्रतिकूलता, अविरुद्धता, पक्षपात सहायता, प्रसन्नता अनुकूल्य ( संज्ञा, भा० ) । अनुकूलना - स०, क्रि० (सं० अनुकूलन ) arre होना, हितकर होना, प्रसन्न होना, पक्ष में होना, मध्यरात बिराजत प्रति अनुकूल्यो देव, अनुकूले और फूले देव० ।
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तौ कहा सरो
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- जाम० ।
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मु- अनुकूल होना या रहना - प्रसन्न या पक्ष में होना । अनुकूल पड़नामुत्राफ़िक होना । अनुकूल जाना --- पक्ष में हो जाना । अनुकूल चलनाइच्छानुसार या श्राज्ञानुसार चलना । अनुकूल पाना या देखना - पक्ष में या प्रसन्न पाना ।
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अनुकृत वि० (सं० ) अनुकरण या नकल किया हुआ ।
अनुकृति - संज्ञा स्त्री० (सं० ) देखादेखी कार्य, नक़ल, एक प्रकार का काव्यालंकार जिसमें एक वस्तु का कारणान्तर से दूसरी वस्तु के अनुसार हो जाने का कथन किया
जाय ।
अनुक्तवि० (सं० ) अकथित, बिना कहा हुआ, स्त्री० अनुक्ता- न कही हुई । अनुक्रम - संज्ञा, पु० (सं० ) क्रमानुसार, सिलसिला, परिपाटी, रीति-भाँति, यथाक्रम, श्रनुपूर्वी ।
अनुक्रमणिका संज्ञा, स्त्री० (सं० ) क्रम, सिलसिला, सूची, फ्रेहरिश्त निघंटु,
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