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भारतीय शिल्पसंहिता
२४. भावचंद्रा (भावमुद्रिका):
हस्तपादौ योगमुद्रा भावचंद्रा सुनर्तकी हाथ-पैर योग-मुद्रायुक्त रखकर नृत्य करती हुई। भावचंद्र
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MRUGAKSHI URVASHI
RAMBHA MANJUGHOSHA मृगाक्षी उर्वशी रंभा
मंजुषोशा २५. मृगाक्षी :
मृगाक्षी सकला नृत्या
सर्व कला से नृत्य करती हुई । मृगाक्षी २६. उर्वशी :
बक्षहस्ते वैत्यशिखा दैत्यखंगन हन्ति च
दाहिने हाथ से दैत्य की शिखा खींचकर उसे खड्गसे मारती स्त्री। उर्वशी २७. रंभा (उत्तान):
हस्तद्वयेत खूरिके धृत्या नत्यं च कुर्वत
ऊर्वीकृत बक्षपानाम्ना रंम्मा नर्तकी।
दोनों हाथ में छुरी धारण करके दाहिना पैर ऊपर रखकर नृत्य करती हुई। रंभा २८. भुजघोषा (मंजुघोषा):
हस्तद्वयेन खड्गे च नृत्यावर्त च कुर्वीत
भुजघोषंति नामा सा नृत्यं करोति सर्वदा।।
दोनों हाथों में खड्ग धारण करके गोल भ्रमर-नृत्य करती नृत्यांगना। मुजघोषा २९. जयाः
शिरसि कलशं धृत्वा जयानृत्यं कुर्वीत ।
मस्तक पर कलश धारण करके नृत्य करती हुई । जया ३०. मोहिनी (विजया):
पुरुषालिंगनयुक्ता मोहिनी नाम्ना नर्तकी।
पुरुष को आलिंगन करती हुई। मोहिनी 'मोहिनी' के अगले पाठ में इन्द्र और रंभा का स्वरूप कहा है। परंतु इस श्लोक के अंतिम पाठ के अनुसार 'मोहिनी' को पुरुष से
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