SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवांगना स्वरूप १७. चंद्रावली: अंजली बद्धा नतंकी च चंबावली सुलोचना सुंदर लोचनयुक्त, अंजली मुद्रावाली, सन्मुख दृष्टिवाली देवांगना । चंद्रावली १८. पत्रलेखा (चंद्ररेखा): .. दक्षिण हस्तकमले ताडपत्रं च धरित्रीका ललाटे चंद्ररेखा च सनाम विस्तरे सदा उसके दाहिने हाथ में लेखनी है, ताड़पत्र धारण करके लेखन करती है तथा उसके ललाट में चंद्र की रेखा है, ऐसी सदा विस्तारवाली। पत्रलेखा १९. सुगंधा : __ सुगंधा च चक्रधर नृत्यं च कुर्वीत चक्र को माथे पर धारण करके नृत्य करती देवांगना । सुगंधा २०. शत्रुमर्दिनी : असिपुत्र घरा नृत्या शोभते शवमर्दिनी हाथ में छुरी धारण करके नृत्य से शोभायमान । शत्रुमर्दिनी S THARO Vatar माननी मानहंसा सुस्वभावा भावचंद्रा MANANI MANAHANSA - SUSVABHAVA BHAVCHANDRA २१. मानवी (माननी): हारहस्ता च नृत्यांगी मानवी कुल सुंबरी । दोनों हाथों में हार धारण करके नृत्य करती अंगवाली, कला की कुल सुंदरी । माननी २२. मानहंसा : पृष्ठ वंशोम्दवा नृत्या मानहंसा च सुंदरी अपनी पीठ दिखाकर नृत्य करती हुई, जिसका मुख पीछे रहता है, ऐसी नृत्यांगना । मानहंसा २३. सुस्वभावा : दाहिना र अरवर र मावि पराको थियो का ऊर्ध्वपादे चतुर्मगो स्वभाव करौ मस्तके दाहिना पैर ऊपर रखकर, दो हाथ मस्तक पर रखकर, विविध अंग-भंग वाली नृत्यांगना । सुस्वभावा For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy