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भारतीय शिल्पसंहिता
३. विधिचिता :
विधिचिता स्वदर्पण हाथ में दर्पण लेकर मुखदर्शन करती या बिंदी लगाती हुई विधिचिता।
१. सुंदरी:
सुंदरी नृत्य मुक्ता च नृत्य करती हो, वह सुंदरी है।
शुभकामिनी
हसाउली
सबकली
कर्पूरमंजरी
५. शुभगामिनी-(शुभांगिनी);
शुभा कंटक (गृक) निर्गता
पैर का कंटक निकालती स्त्री। (शुभांगिनी) ६. सावली :
पाद शृंगार को च हंसा कमल लोचना गाथा उच्चारणा वाथ ॥ सर्व
पठान्तरः कर्ण शृगार भूषिता पर का शृंगार करती हुई, झांझर पहनती हुई, कमल जैसे लोचनयुक्त, गाथा का उच्चार करती हुई होती है हंसावली। ७. सर्वकलाः
नत्यंति च सर्वकला वरदा दक्षा जणिज्ञ
मस्तके वामहस्ते च चितनमुद्रा संयुतम् दायाँ हाथ वरदमुद्रायुक्त, बायां हाथ नृत्यमुद्रा में मस्तक पर रखकर नृत्य करती हुई होती है नृत्यांगना। (सर्वकला)
पाठान्तर:
ते सह भूपाणा मध्ये धिषु धिषु धिन धिग् जायति परंपुर बहि चतुर्मुखे द्विव्य सुरनर नृत्यंति भावना सहजाम् कई पुरानी प्रतियों में ऊपर जैसे बिना अर्थ के भी श्लोक है।
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