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भारतीय शिल्पसंहिता
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शाकिनी SHAKINI
पिशाच PISHACHI
वेताल VAITAL
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३. क्षेत्रपाल:
क्षेत्रपाल शूलवंत जटामुकुटकुर्चय
दिग्वासा निऋति देव कज्जल चल संन्निभम् ॥३॥ क्षेत्रपाल : त्रिशूल धारण किये हुए, जटामुकुट और दाढ़ीवाले निर्वस्र (नग्न), श्याम वर्ण के निऋति देव को नैऋत्य कोण के अधिपति समझा जाये। ४ यक्ष:
तुंदिला द्विभुजाकार्या निधिहस्त महोत्कटो॥ मयसंगृहे
बड़े पेटवाले, दोनों हाथों में द्रव्य की थैली लिये हुए, यक्ष होते हैं। ५ पीतर:
पीतर पीतवर्णोम यज्ञसूद्विभुजय
वाम जानु परिन्हस्ता सूचि दक्षिण हस्तायो॥५॥ काश्यपे वृद्ध पितृदेव पीत वर्ण के, यज्ञसूत्न धारण किये हुये, दो हाथ वाले हैं। उनका बायां हाथ पैर के घुटनों पर है, और दायें हाथ में यज्ञ की शरवा-सूचि है। (दोनों हाथों में नाग के आभूषण है, और भद्रपीठ पर बैठे हैं।) ६. नागस्वरूप :
द्विजिह्वा बाहव सप्तफणी समन्वितः
प्रक्षसूत्र धरा सर्वे कुंडिका पुच्छ संयुता॥ दो जिह्वायुक्त, सप्तफणा और मणि के साथ, नाभि के नीचे सर्पपुच्छाधार और ऊपर पुरुषाकार है। उनके हाथ में माला पौर कमंडल है। (अन्य मत से खड्ग और ढाल भी है।)
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