SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतीय शिल्पसंहिता MY PATopIE EGE प्रेत शाकिनी SHAKINI पिशाच PISHACHI वेताल VAITAL PRET ३. क्षेत्रपाल: क्षेत्रपाल शूलवंत जटामुकुटकुर्चय दिग्वासा निऋति देव कज्जल चल संन्निभम् ॥३॥ क्षेत्रपाल : त्रिशूल धारण किये हुए, जटामुकुट और दाढ़ीवाले निर्वस्र (नग्न), श्याम वर्ण के निऋति देव को नैऋत्य कोण के अधिपति समझा जाये। ४ यक्ष: तुंदिला द्विभुजाकार्या निधिहस्त महोत्कटो॥ मयसंगृहे बड़े पेटवाले, दोनों हाथों में द्रव्य की थैली लिये हुए, यक्ष होते हैं। ५ पीतर: पीतर पीतवर्णोम यज्ञसूद्विभुजय वाम जानु परिन्हस्ता सूचि दक्षिण हस्तायो॥५॥ काश्यपे वृद्ध पितृदेव पीत वर्ण के, यज्ञसूत्न धारण किये हुये, दो हाथ वाले हैं। उनका बायां हाथ पैर के घुटनों पर है, और दायें हाथ में यज्ञ की शरवा-सूचि है। (दोनों हाथों में नाग के आभूषण है, और भद्रपीठ पर बैठे हैं।) ६. नागस्वरूप : द्विजिह्वा बाहव सप्तफणी समन्वितः प्रक्षसूत्र धरा सर्वे कुंडिका पुच्छ संयुता॥ दो जिह्वायुक्त, सप्तफणा और मणि के साथ, नाभि के नीचे सर्पपुच्छाधार और ऊपर पुरुषाकार है। उनके हाथ में माला पौर कमंडल है। (अन्य मत से खड्ग और ढाल भी है।) For Private And Personal Use Only
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy