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भारतीय शिल्पसंहिता
श्रीकृष्ण राधा के नाक में जिस 'बाली' को पहनाते हैं, उसे बेसर या नासाभूषण कहते हैं। शुक्राचार्य कहते हैं कि मूर्तियों को आभूषण की तरह रेशमी, चर्म या सूती वस्त्र पहनाये जाते हैं। धोतीय और उत्तरीय नामके दो वस्त्र विशेषकर होते है। विष्णु, इन्द्र, कुबेर, प्रादि देवों की मूर्तियों को राजसी और शिव, ब्रह्मा, अग्नि अादियों को तपस्वी वस्त्र पहनाये जाते है। सूर्य तथा स्कंद (कार्तिकेय) प्रादि मूर्तियों को सैनिक का गणवेश पहनाया जाता है। उसे अस्त्र-शस्त्र से सजाया जाता है। स्कंद, सुब्रह्मण्यम्, षडमुखम्, कुमार, ये सब कार्तिकेय के नामों के पर्याय है। दुर्गा, चंडी, लक्ष्मी, सरस्वती, मादि महादेवियों को उच्च वर्ण की महिलाओं जैसी वेशभूषा पहनाई जाती है। वे बहुविध रत्नालंकारों से सुशोभित होती है।
प्रतिमानों के पीछे मुख को वलयित किये हुए आभामण्डल, प्रभामण्डल, प्रभावति या शिरचक्रम् होता है।
देव प्रतिमानों के भूषाविन्यास सामान्यतः तीन विभाग में विभाजित किये जा सकते हैं : विष्णु, इन्द्र, कुबेर आदि देवों की मूर्तियों को राजसी वस्त्र और शिव, ब्रह्मा, अग्नि आदियों को तपस्वी वस्त्र पहनाये जाते हैं।
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उदरबंध
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उरदाम
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मुक्तदाम
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VANAMALA
बनमाला
कटिसूत्र-उरद्दाम, मुक्तदाम
PADVALAYA
पादवलय
PADJALAK १. परिधान
पादजालक २. अलंकार ३. शिरोभूषण सूर्य की प्रतिमा को छाती का वस्र और पैर में उपान (बूट) विशेष रूप से पहनाये जाते है। इससे सूर्य के पैर की उंगलियां दिखाई
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