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अङ्ग:द्वितीय
न-प्रमाण: तालमान (Iconometry or Measurement of Idol: Talman)
भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की लंबाई-चौड़ाई, ऊंचाई आदि के तालमान और प्रमाण विविध प्रकार के हैं। शिल्प-ग्रंथ के अलावा पुराण और नीतिशास्र के ग्रंथों में भी इस विषय की सविस्तर चर्चा की गयी है। महर्षि शुक्राचार्य और 'विवेक विलासकार' प्राचार्य जिनदत्त सूरि का शास्त्रीय मत इस कठिन विषय को बहुत सरलता से स्पष्ट करता है।
युका, यव, आदि पर से प्रांगुल का, और उस पर से गज-हस्त का प्रमाण निश्चित हुआ है। इस नाप का उपयोग स्थापत्य निर्माण में भी होता है। मूर्ति निर्माण के कार्य में यवांगुल (या मात्रांगुल) का नाप गिना जाता है। उसके अलावा शिल्पीगण देहलब्धांगुल के अनुसार नाप लेते हैं।
शिल्पीगण मुखमान से संपूर्ण अवयव की कल्पना करते हैं। मूर्ति-विधान में मूर्ति की रचना के लिए 'तालमान' का नाप दिया है। तालमानः 'तालस्य द्वादशांगुल' अर्थात बारह प्रांगुल या बारह भाग को ताल समझना चाहिये । प्रतिमा के ललाट से दाढ़ी तक के चेहरे को एक तालमान नाप कहते हैं। इससे हम तालमान के प्रमाण की कल्पना कर सकते हैं।
'मत्स्यपुराण' में इस प्रकार स्पष्ट वर्णन है कि :
मुखामानेन कर्तव्या सर्वावयव कल्पयेत् (प्र. २५७४१) 'विवेक विलास' में भी स्पष्ट कहा है कि:
"नवत्ताल भवेद्रुयं तालस्य द्वादशांगुलम्
प्रांगुलानीन कंबाया किन्तु रूपस्य तस्यहि !!" १३५ सर्ग-१. प्रतिमा की ऊंचाई नवताल की रखनी चाहिए। बारह अंगुल का एक ताल होता है। लेकिन यहां, कंबासूत्र के अनुसार, गज के मंगुल न लेते हुए, प्रतिमा के ही लेने चाहिये । अर्थात् अंगुल का अर्थ इंच नहीं, लेकिन विभाग समझना चाहिए।
महर्षि शुक्राचार्यजी कहते हैं कि :
"स्वस्वमुष्टश्चतुर्थांशो हयंगलं परिकीर्तितम्
तदंगुलदिशांगुलाभिर्भवेतालस्य दीर्घता ॥६-८२॥ अपनी ही मुट्ठी के चतुर्थांश को एक अंगुल मानना चाहिये । ऐसे बारह अंगुल का एक ताल जानना चाहिये।
पुराण, संहिता, नीतिशास्र और दोनों महर्षियों के कथनानुसार ताल का अर्थ (मेजरमेंट) दो फुट के गज के २४ अंगुल नहीं, लेकिन प्रतिमा के ही प्रमाण से ८-९-१० तालमान-उसके विभाग से आनेवाले अनुक्रम से ९६"-१०८"-१२०" को अंगुल के भाग कहना उचित होगा।
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