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भारतीय शिल्पसंहिता
चैत्य, स्तूप, विहार और स्तंभ त्रिमूर्ति जैसे चतुर्मुख प्रतिमा स्थापन की सर्वतोभद्र की प्रथा जैनों में सुंदर हैं। प्राचीन काल में जैन संप्रदाय में चैत्य, स्तूप, विहार और स्तंभ बनाने की प्रथा होती थी। यह चारों धर्म के स्थापत्य विभाग हैं। चैत्य:
चत्य शब्द प्रयोग वेदयुग में होता था। जैन आगम ग्रंथों में चैत्य का देव मंदिर में अर्थ लिया हैं।
वेद काल में पवित्र पुरुषों की समाधि की स्मृति में निर्माण करता चैत्य शब्दव्युत्पत्ति चिता, मृतदेह पर अग्निसंस्कार समये काष्ट का ढग ऐसा अर्थ होता हैं।
चैत्य मंदिर की रचना-प्रवरों में दीर्घ ऊँचा होता था। प्रागे चैत्य संमुख वंदन के लिये मंडप की दो पक्ष में स्तंभों की पंक्ति होती थी। चैत्य में प्रतिमा स्थापन करके उपर घंटाकृति शिखर होता था। चत्य की तीन मोर प्रदक्षिणा मार्ग होता था। ऐसी कल्पना गुंफा मंदिरों की अवशेष से होती हैं। वर्तमान काल में चैत्य का अस्तित्व नहीं हैं। चैत्य का स्वरूप वर्तमान में प्रासाद न लिया।
स्तूप:
सत्पुरुषों के अस्थि स्थान पर स्तूप का विनिर्माण होता था। पवित्र अस्थि भस्म बाल की स्मृति सुवर्ण की दाबडी में रखकर भूमि में पधरा के उनके ऊपर गोल उलगडलीया (टोपला) की स्तूप गोल की प्राकृति होती हैं। ऊपर मध्य में स्तंभ खडा करके उपर तीन, पांच, सात, छत्र बनाते थे।
___ इजिप्त (मिसर) में ऐसे स्मारक त्रिकोणाकार पिरामिड बने हैं। पाली भाषा में स्तूप को थप्पा कहते हैं। बर्मा में गोडा और श्रीलंका में दाभगा कहते है। नेपाल में चिता पर से स्तूप कहते हैं। जापान में तोरण कहते हैं। यह भारतीय जैन आगम ग्रंथ के कथानुसार तीर्थंकर के निर्वाण के बाद अग्निसंस्कार स्थान पर देवताओं स्तूप की रचना करते हैं। एसे जैन स्तूप वर्तमान में दिखाई नहीं पडते लेकिन मथुरा में सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ प्रभु की स्मृति में रचा गया था। पुरातत्त्वज्ञ मानते हैं कि यह स्तूप ईसापूर्व सातवीं शताब्दी का है। विहार:
विहार संत महात्मा प्राचीन काल में ग्राम के बहार जंगल में एकान्त में रहते थे। भक्त गृहस्थों का कष्ट निवारने के लिए स्थान बनाने लगे। मध्य में गुरु का स्थान, आसपास शिष्यों की कोठरी की व्यवस्था करते थे। पर्वत में खुदे हुने विहार में जल की व्यवस्था सुंदर देखने में पाती है। साधु मठ के अभ्यास चितन के स्थान को विहार करते है। जैनों मे विहार को वसति या वर्तमान में उपाश्रय कहते है।
स्तंभ:
- प्राचीन काल में देवमंदिर के आगे बड़ा स्तंभ खडा करने की प्रथा थी। अब भी द्रविड प्रदेश में है। ब्राह्मण संप्रदाय का अनुकरण बौद्धों ने किया। जैनों में दिगंबर संप्रदाय में स्तंभ की विशेष प्रथा है । स्तंभ को मानक स्तंभ या मानव स्तंभ कहते है। देव मंदिर के आगे या भगवान विहार स्थान के उपदेश स्थान का स्मरण चिन्ह रूपे धर्मरोपण बडास्तंभ खडा करते थे। बौद्धों में ऐसे स्तंभ वर्तमान में दिखते हैं। स्तंभ के ऊपरी भाग में धर्मचक्र, सिंह, वृषभ या मूर्ति की आकृति होती है। चैत्य, स्तूप, विहार और स्तंभ यह चार प्रखंड गिरिपर्वतों में उत्कीर्ण गुंफारूप वर्तमान में दिखाई देते है। उनका स्वतंत्र रूप इंट या पाषाण में भी बना है। इसा के पूर्वसे नवमी शताब्दी तक गुफाओं में उत्कीर्ण हुई। पाबु पर जैन मंदिर के पास एक स्तंभ खडा है।
__ जैन मंदिरों के मंडावेर में या मंडप के विनान (घुमट) में यक्ष-यक्षिणी या विद्यादेवी के कई स्वरूप रखे जाते हैं। मंदिर के बाहर तीन भद्रक गवाक्ष में जैन प्रतिमा की स्थापना करने का आदेश है, जिससे पता लगता है कि वह किस देव का मंदिर है।
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