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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जैन प्रकरण मेरुगिरी www.kobatirth.org मन मेरुगिरी स्वरूप मेरुfre वृत्ताकार भद्रशाल भूमिपर स्थित है। प्रथम कद रूप नंदनवन । प्रागे चढ़ता सोमरस वन आता है। इसमें आगे चढ़ता पंडक वन आता है। यहा प्रभुजी का जन्माभिषेक होता है। उसके ऊपर चूलिका आती है। चूलिका की टोच पर शाश्वत जिन चैत्य आता है। पंडक वन में पूर्व-पश्चिम दिशा में श्वेत वर्ण की सिद्धनिता और पश्चिम उत्तरे रक्त वर्ण की सिद्धशिला है। यह शिला धनुष्याकार है। Fam Pom DOO Cel કૃતિઓ પી. R TOR. MERUGERI. जिन Lagaa For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोम २०१ तलदर्शन सिंहासन गादी के रूप में होता है। प्रभुजी का जन्म होता है तब इंद्रादि देव वहा जन्माभिषेक का उत्सव मनाते हैं। सोमरस वन में चारों दिशा में जिनभवन होते हैं। दिशा में चार इंद्रों का प्रासाद वापिका सहित होता है। नंदनवन की चारों दिशाओं में जिन चैत्य और
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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