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जैन प्रकरण
मेरुगिरी
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मन
मेरुगिरी स्वरूप
मेरुfre वृत्ताकार भद्रशाल भूमिपर स्थित है। प्रथम कद रूप नंदनवन । प्रागे चढ़ता सोमरस वन आता है। इसमें आगे चढ़ता पंडक वन आता है। यहा प्रभुजी का जन्माभिषेक होता है। उसके ऊपर चूलिका आती है। चूलिका की टोच पर शाश्वत जिन चैत्य आता है। पंडक वन में पूर्व-पश्चिम दिशा में श्वेत वर्ण की सिद्धनिता और पश्चिम उत्तरे रक्त वर्ण की सिद्धशिला है। यह शिला धनुष्याकार है।
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तलदर्शन
सिंहासन गादी के रूप में होता है। प्रभुजी का जन्म होता है तब इंद्रादि देव वहा जन्माभिषेक का उत्सव मनाते हैं। सोमरस वन में चारों दिशा में जिनभवन होते हैं। दिशा में चार इंद्रों का प्रासाद वापिका सहित होता है। नंदनवन की चारों दिशाओं में जिन चैत्य और