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भारतीय शिल्पसंहिता
अथ त्रयोदशादित्यस्वरूपम्
(वास्तुविद्या दीपार्णव)
वास्तुविद्या दीपार्णव ग्रंथ में त्रयोदशादित्य स्वरूप पृथक प्रकार के कहे है । तेरह आदित्य भी दो दो भुजाओं के सात्विक रूप हैं। शंख, कमल, वज, फल, दंड और चक्र धारण किया है। तेरह माकड सूर्य को रथारूढ कहा है, बाकी प्रतिमा के बाहर के वाहन का उल्लेख नहीं है। अन्य ग्रंथ में सप्ताश्वरथ का उल्लेख है। प्रादित्य स्वरूप त्रयोदश दिव्य दीपार्णव मते। क्रम नाम दायाँ हाथ बायाँ हाथ क्रम नाम
दायाँ हाथ बायां हाथ
कमल
१ २
८
प्रादित्य रवि गौतम भानुमान्
शंख
शंख शंख पद्म कमल
वजदंड वञ्चदंड फल
धूमकेतु संभवदेव भास्कर सूर्यदेव
शंख
कमल वज्रदंड पदंड शतदल लीलोतरी शंख वज्रदंड
४
दंड
५
११
शाचित दिवाकर
सतुष्ट
कमल वज्रदंड
१२ सुवर्ण केतु १३ मार्तण्ड
चक्र फल कमल
कमल पत्र कमल
रथारुड़
अथ त्रयोदशादित्यस्वरूपाणि
(वास्तुविद्या दिपार्णव)
विश्वकर्मा उवाच
अथातः संप्रवक्ष्यामि मादित्यांश्च करद्वयान् । बयोवशादित्यानां (पोक्त) रुपं श्रुणु विचक्षण ॥१॥ प्रथमे हस्तके शंखः वामे पद्म च हस्तके। प्रथमं यद्भवेन्नाम मादित्येति विधीयते ॥२॥ इति मावित्य ॥१॥ प्रथमे हस्ते शंखस्तु बामे तु वज्रदंडकम् । द्वितीयं तुं भवेद्यस्य रवि म विधीयते ॥३॥इति रविदेव ॥२॥ प्रथमे दक्षिणे हस्ते वामे च परकम् ।। तृतीयस्तु भवेद् देवो गौतमस्तु विधीयते ॥४॥ इति गौतम ॥३॥ प्रथमे पद्म तु हस्ते वामे च तदलं करे। चतुर्थन्तु भवेन्नाम भानु (मान विधियतो) मानिति संक्षितः॥५॥ इति भानुमान् ॥४॥ प्रथमे हरते पद्म वामे शंखन्तु हस्तके। पंचमस्तु भवेद् देवः शाचितो नाम विश्रुतः ॥६॥ इति शाचितदेव ॥५॥ प्रथमे वजवंडश्च वामे तु वज्रदंडकम् । षष्ठोनुस भवेद् देवो दिवाकर विधीयते ॥७॥ इति विवाकर ॥६॥ प्रयमे वज्रदंडं च वामे पद्म च हस्तके ॥ सप्तमं तु भवेनाम धूमकेतुरिति श्रुतम् ॥८॥ इति धूमकेतु ॥७॥
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