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भारतीय शिल्पसंहिता
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१० महालक्ष्मी ११ महाकाली
१२ महासरस्वती गौरि का आयातने-गौरि का वामें "श्री" दक्षिणे सिद्धिः पश्चिमे सावित्री; नैऋत्ये सरस्वती वायव्ये भगवती; ईशान्ये गणेशः अग्निमे कार्तिकेय मध्यमां किरीट कुंडलादि अलंकार युक्त गौरि की स्थापना करना गौरि के प्रासाद के द्वार की अष्ट प्रतिहारिणी द्वारपालिका नीचे दी गयी हैं। दिशा नाम
प्रायुध पूर्व द्वारे जया-वामे
अभय, अंकुश, पाश, दंड विजया-दक्षिणे
पाश, दंड, अभय, अंकुश दक्षिण द्वारे अजिता-वामे
अभय, कमल, पाश, दंड अपराजित-दक्षिणे
पाश, दंड, अभय, कमल पश्चिम द्वारे विभक्ता-वामे
अभय, वज्र, अंकुश, दंड मंगला-दक्षिणे
अंकुश, दंड, अभय, वज्र उत्तर द्वारे मोहिनी-वामे
अभय, शंख, पद्म, दंड स्तंभिनी-दक्षिणे
पद्म, दंड, अभय, शंख चंडिका देवी के प्रासाद के द्वार के अष्ट प्रतिहार द्वारपाल: दिशा नाम
प्रायुध पूर्व द्वारे वताल-दक्षिणे
तर्जनी, खट्वांग, डमरु, दंड कोटर (कर)-वामे डमरु, दंड, तर्जनी, खट्वांग दक्षिण द्वारे पिङ्गलाक्ष-दक्षिणे
अभय, खड्ग, गदा, दंड भृकुट-वामे
गदा, दंड, अभय, खड्ग पश्चिम द्वारे धूम्रक-दक्षिणे
तर्जनी, वज्र, अंकुश, दंड कुक्कुट-वामे
दंड, अंकुश, वज्र, तर्जनी उत्तर द्वारे रक्ताक्ष-दक्षिणे
तर्जनी, त्रिशूल, खट्वांग, दंड सुलोचना (त्रिलोचन)-वामे खट्वांग, दंड, तर्जनी, त्रिशूल
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