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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवी - शक्ति - स्वरूप सात मातृकाएँ इस प्रकार है ब्रह्मा, महेश, स्कंध, वैष्णव, वराह, इन्द्र, इन छः देवों की पत्नियाँ और सातवीं चामुंडा (जगदंबा त्रिगुणात्मक महाकाली का अपर नाम है)। इन सप्तमातृकाओं के स्वतंत्र मंदिर भी हुए हैं। मातृकाओं की एक पंक्ति के पट में पहले वीरभद्र और अंत में गणेश की मूर्ति भी होती है। ऐसी (सात + दो) कुल नौ मूर्तियां अंकित की जाती हैं। सप्तमातृकाओं के प्रायुध में कई कमधिक और पृथक प्रायुध की मूर्तियाँ मिलती है। कई सप्तमातृकाओं की गोद में बालक को भी बिठाया होता है। इलोरा की गुफाओं में सप्तमातृकाओं की विशाल पंक्ति बद्ध मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। १. 'अपराजित सूत्र' और 'रूपमंडन' में इनके चार हाथ कहे गये हैं। कई जगह छः भुजा भी लिखी हैं। वाहन एक ही कहा है। चार मुख होते हैं । मृगचर्म मंडित ब्राह्मी के दायें हाथ में वरद, माला और ख़ुवा होता है। बायें हाथ में पुस्तक, कमंडल और अभय मुद्रा होती हैं। चार हाथ में माला, कमंडल, खुवा, पुस्तक होते हैं। १२५ २. माहेश्वरी : 'रूपमंडन' में चार भुजा कही हैं, जिनमें खोपड़ी, त्रिशूल, खट्वांग और वरदमुद्रा हैं। उनके पाँच मुख और तीन-तीन नेत्र होते हैं। जटामुकुट में चंद्र होता है। कई जगह छः भुजायें भी पायी गई हैं। उसके अनुसार वरद, माला, डमरु, त्रिशूल, घंटा और अभय मुद्रा होती हैं। शरीर का वर्णं श्वेत हैं। ३. कौमारी (स्कंध - कार्तिकेय की पत्नी) रक्त वर्ण, छः मुख, बारह नेत्र, और मोर का वाहन होता है। बारह भुजाओं में वरद, शक्ति, पताका, दंड, घंटा, और बाण, तथा बारह हाथों में धनुष, घंटा, कमल, कुर्कुट, ढाल और परशु होते हैं। चार भुजा में त्रिशूल, शक्ति, गदा, ढाल होते हैं। प्रथम वीरेश्वर ब्रह्माणीदेवी ४. वैष्णवी गरुड पर बैठी हुई, श्याम वर्ण की, वनमाला धारण की हुई वैष्णवी को छः भुजायें होती हैं। उनमें वरद, गदा, पद्म, शंख, चक्र, और अभय होते हैं। चार भुजाओं में वरद, शंख, चक्र, गदा होते हैं। For Private And Personal Use Only ५. वाराही : श्याम वर्ण, शूकर के जैसा मुख, बड़ा पेट, दायें हाथों में वरद, दंड, खड्ग और बायें हाथों में ढाल, पाश और अभय होते हैं । चार भुजा के स्वरूप में घंटा, चक्र, गदा, बाण होते हैं। ६. इंद्राणी हजार आँखोवाली, फिर भी सौम्य । शरीर का वर्ण सोने जैसा। हाथी पर बैठी हुई। दायें हाथों में वरद, माला, वज्र मौर बायें हाथों में कटोरा, पान और अभय होते हैं ।
SR No.020123
Book TitleBharatiya Shilpsamhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherSomaiya Publications
Publication Year1975
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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