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विष्णु
अन्य ग्रंथों में दूसरे प्रकार से यह क्रम दिया गया है ।
१
शंख
पद्म
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चक्र
गदा
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३
'दक्षिणोर्धक क्रमात' अर्थात दायें ऊपरी हाथ से बायें ऊपरी हाथ और फिर बाया नीचा और दायां नीचा हाथ लेने का क्रम 'स्कंध - पुराण', 'पद्म पुराण', 'बुद्धहरितस्मृति', 'तसार', 'शिल्परत्न', 'श्रीत्तत्वनिधि' यादि ग्रंथों में वर्णित हैं। यह क्रम समझकर आयुष धारण कराने से मूर्ति विधान शास्त्रीय बनता है ।
विष्णु किरीट- मुकुट, कुंडल, वनमाला जैसे आभूषण धारण करते हैं और उनका वाह्न गरूड़ होता है । गरूड़ वीरासन मुद्रा में अंजली - युक्त हाथों की मुद्रा धारण किये बैठता है। गरूड़ चार हाथ वाला होता हैं। उसकी नासिका शुक जैसी होती है, उसके दो पंख होते हैं । चार हाथोंवाले गरूड़ के दो हाथ अंजलीबद्ध होते हैं। बाकी दो हाथों में से एक में छत्र और दूसरे में घट - कुंभ रहता है ।
'विष्णु धर्मोत्तर' और 'हेमाद्रि' में दो हाथों वाली विष्णु मूर्ति को लोकपाल विष्णु कहा गया है। उनके दो हाथों में गदा और चक्र होते हैं ।
परित्राणाय साधुना विनाशायच दुष्कृताय्
धर्म संस्थापनार्थ ये संम्भवामि युगे युगे ॥ गीता ॥ १-८
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विष्णु के अवतार
चौबीस विष्णुमूर्तियों के उपरांत उनकी बहुत-सी अवतार मूर्तियाँ भी पायी गई हैं। सामान्यतः दस अवतार माने गये हैं । फिर भी पुराण और भागवत में १९ से २२ अवतारों की संख्या भी मिलती है । प्रासंगिक रूप-प्रावाद्योंको भी अवतार ही मान लिया गया हैं। गीता में कहा है कि:
इस तरह अवतार कल्पना के अनुसार साधु और धर्म के नाश के लिये विष्णु अवतार धारण करके पृथ्वी पर विविध स्वरूप में है । देव-दैत्य के बारह युद्ध हुए, तब किसी भक्त विशेष की आत्मा और प्राणों की रक्षा के लिये, या विश्व के उद्धार के लिये विष्णु भगवान को अवतार धारण करना पडता हैं।
'विष्णुधर्मोत्तर' में हंस, मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, त्रिविक्रम, परशुराम, राम, बलराम, कृष्ण, व्यास, दत्तात्रेय, पृथु, मोहिनी, कपिल, हयग्रीव, धन्वंतरी, ऐसे १९ स्वरूप वर्णित हैं। इसमें बुद्ध और कल्की का उल्लेख नहीं है, जो कि विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं ।
भागवत में विष्णु के अवतारों का यह क्रम दिया गया है: कुमार, वराह, नारद, नर नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ या सुयश, वृषभ, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वंतरी, मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, वेदव्यास, राम, बलराम, कृष्ण ( २० ); बुद्ध और कल्की अवतार भावी के गर्भ में वर्णित है। इस तरह भागवत में २२ अवतार बताये गये हैं ।
कई जगह अवतारों के कई नाम नहीं दिये गये हैं । जैसे, नारद और ह्युग्रीव, वरदराज ( गजेन्द्र मोक्षक) हंस, यह नाम दिये गये
हैं ।
शिल्प में सामान्यतः यह दस नाम प्रचलित हैं : मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वराह, वामन, भार्गवराम (परशुराम ) राम, बलराम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की ।
अब हम यह सभी का स्वरूप वर्णन देखें ।
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दशावतार लोक
१. मत्स्य
नाभि से नीचे का भाग मत्स्याकार है, और ऊपरी हिस्सा चार हाथवाला पुरुषाकार हैं । कोई दो हाथ के भी होते हैं । सर पर किरीट-मुकुट, कुंडल आदि अलंकार, दो हाथों में शंख और चक्र होते हैं। शतपथ में जलप्रलय में से बचानेवाले मत्स्य प्रजापति का ही