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भामुख
देवों की संख्या बढ़ी। पहले जैसा कहा गया है तदनुसार वेदों में ब्रह्म का उल्लेख नहीं हैं, उनमें रुद्र-शिव, प्रजापति और हिरण्यगर्भ का उल्लेख मिलता है। वेदों में आठ दिग्पालों का भी स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। उनमें केवल इन्द्र, वरुण, अग्नि और सूर्य जैसे प्रत्यक्ष देवों की स्तुति मिलती है। वर्षा के देव के रूप में वरुण को न मानकर इन्द्र को माना है। दक्षिण दिशा के स्वामी यम को मृत्यु के देव और उत्तरदिशा के स्वामी धनदकुबेर को क्रम से दक्षिण और उत्तर दिशा के दिग्पतियों का स्थान मिला है। क्षेत्रपाल, राक्षस, भैरव और शिवसहचरों को नैऋत्य में स्थान मिला है। पवन-वायु जैसे प्रत्यक्ष देव को वायव्यकोण में और शिवस्वरूप ईशान को ईशानकोण में स्थान मिला है। इस प्रकार
आठ दिशात्रों के अधिपतियों को दिग्पालों के रूप में पुराणों में स्थान मिला है। आकाश और पाताल के अधिपति के रूप में क्रम से ब्रह्मा और अनन्त (नाग) को दिग्पति मानकर पुराणों ने दस दिग्पालों की गिनती की है।
ऋग्वेद में इन्द्र की स्तुति हैं, इन्द्र वैदिक युग के प्रधान देवता हैं। ऋग्वेद के चौथे भाग में इन्द्र-सम्बन्धी सूक्त हैं, इन्द्र मेघ की गर्जना करता हैं, वेदों में इन्द्र को देवताओं का स्वामी-परमेश्वर बताया गया है। "
ऋग्वेदकालीन 'त्रिमूर्ति' में इन्द्र है, लेकिन पुराणकाल में ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र की महत्ता बढ़ने पर ऊपर बताये त्रिदेव की महत्ता क्षीण होती गई, फिर भी स्वर्ग के अधिपति के रूप में इन्द्र का महत्त्वपूर्ण स्थान सुरक्षित रहा, स्वर्ग के अधिपति के रूप में इन्द्र के असुरों और दानवों के साथ कई युद्ध हुए हैं। शतपथ-ब्राह्मण और तैत्तिरीय संहिता में इन्द्र, अग्नि और सूर्य को तीन देवों में सर्वोत्तम स्थान मिला है।
दिग्पाल अग्निवेदों में इन्द्र के बाद अग्नि को दूसरा स्थान मिला है। उनकी स्त्री स्वाहा है, जिसको सात जिव्हाएँ हैं। सुप्रभेदागम में उसका रक्तवर्ण कहा है। वरद, अभय, शक्ति और स्त्रुक ये चार आयुध उसके चार हाथों में हैं। एक मुख, तीन नेत्र, बकरा अथवा भेड़का वाहन बताया है। शिल्पशास्त्र में उसका सुवर्णवर्ण, लम्बी दाढ़ी, यज्ञोपवीत और दोनों हाथों में माला और कमण्डलु, ऐसा वर्णन मिलता है।
वैदिक ग्रन्थों में अग्नि के वर्णन में उसके दो सिर, चार सींग, तीन पैर और सात हाथ बताये हैं।
यम-दक्षिण दिशा का अधिपति है, उसे पितराज भी कहते हैं। धर्मराज भी उनका नाम है, भैंसे का उसका वाहन है, उसकी स्त्री का नाम धूमोर्णा है। विष्णुधर्मोत्तर में लिखा है कि उसके चार हाथ हैं, प्रत्येक हाथ में क्रमशः दण्ड, खड्ग, त्रिशूल और माला है। उनके एक तरफ चित्रगुप्त कागज और लेखिनो के साथ खडा है, बायीं ओर भयंकर 'काल' हाथ में पाश (फाँसा) लेकर स्थित है। रूपमण्डनग्रन्थ में लिखा है कि उसका श्यामवर्ण है, चार हाथों में लेखिनी, पुस्तक, मुर्गा और दण्ड धारण किया है और भैसे के वाहन पर यमस्वरूप स्थित है।
___ निर्ऋति-वैदिक देव निऋति का विशेष उल्लेख नहीं मिलता। वह भूतप्रेत आदि का अधिपति है। पुराणों में ग्यारह रुद्रों में वह गिना गया है। उससे कहीं राक्षस भी कहा है। अंशुभेदागम में उसके बारे में लिखा है कि वह महाकाय है, उसका नीलवर्ण है, दाढीवाला विकराल उसका मुख हैं, हाथों में खड्ग और ढाल है, और चारों ओर सात अप्सराएँ हैं। सुप्रभेदागम में श्यामवर्णी निति का नर वाहन बताया है। नैऋत्यकोण के स्वामी निऋति के वर्णन में रूपमण्डनकार लिखते हैं कि उसके चार हाथों में खड्ग, ढाल, पारा और शत्रु का मस्तक है, लम्बी दाढ़ी और भयंकर चेहरा है और कुत्ते का उसका वाहन है।
वरुण-पश्चिम दिशा के स्वामी और वर्षा के देवता हैं, उनके चार हाथों में पाश, माला और कमण्डलु हैं। मगर का वाहन है। इन्द्र, अग्नि और सूर्य के साथ उनका स्थान है।
वायुदेव-वायव्यदिशा के स्वामी हैं, हरिण उनका वाहन है और दो हाथों में ध्वजा, कमण्डलु और माला हैं।
कुबेर-धनद-सोम उत्तर दिशा के स्वामी हैं, वे यक्षों के राजा हैं। सिलोन में वैश्रवण और बौध्द में जंभल नाम से उनकी पूजा होती है। अंशुभेदागम में उनका वर्णन मिलता है-श्यामवर्ण मूर्ति, चार हाथों में वरद, अभय, गदा और अंकुश ये चार प्रायुध हैं, बगल में शंखनिधि और पद्मनिधि की मूर्तियाँ होती हैं।
शिल्परत्न में वर्णन मिलता है कि वे मनुष्यों द्वारा खींचे जानेवाले रथ पर बैठे हैं, मुँह में से दाँत दिखाई देते हो ऐसी स्त्री, विभव, वृद्धि और रत्नपात्र धारण किये हैं, गौर वर्ण है, वरद, गदा, पद्म और. . . धारण किये हैं, विष्णुधर्मोत्तर में दाढ़ीमूंछवाले, पीली आँखोंवाले, गदा और शक्ति धारण किये हुए नरवाहन कुबेर बताया है।
ईशान-ईश शिव का स्वरूप विशेष है, वह जटामुकुटधारी है, त्रिशूल और कपाल हाथ में हैं, कमल का आसन है। ऐसा वर्णन अंशुभेदागम में मिलता है। शिल्परत्न में बताया है कि उनका वृषभ-बल का वाहन है, जटामुकुट में चन्द्र है, तीन नेत्र हैं, सर्प का आभूषण है, दो हाथों में त्रिशूल और वरद हैं। रूपमण्डन में वरद, त्रिशूल, सर्प और बीजोरु (फल) है, और नन्दी-बैल का वाहन है।
पाताल के दिग्पाल-अनन्त (नागदेव) काले वर्ण के हैं, कमल उनका आसन है, हाथ में सर्प है। अन्य मत में अनन्त-नाग नभि के नीचे सकृिति और ऊपर मनुष्याकृति है, विष्णु के आयुध उनके आयुध हैं, ऊर्ध्वलोक-आकाश के स्वामी ब्रह्मा का हंस का वाहन है, उनका सुनहला वर्ण है, उनके चार मुख हैं, पुस्तक और कमल धारण किया है।
ग्रह-सूर्य के स्वरूप का पहले वर्णन हो चुका है, चन्द्र क्षीरोद समुद्र से निकले हैं और वे शिव के मुकुटभूषण हैं। मंगल, पृथ्वी के पुत्र हैं,
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