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अन्य लिपियां
७९ स्रोत से नहीं चलता। इसलिए हमें पुरालिपिक अनुमानों की ही शरण लेनी पड़ती है जो कभी ध्रुव-सत्य नहीं हो सकते । ये चिह्न ब्राह्मी से मिलते-जुलते हैं। इससे पता चलता है कि ये अशोक के तत्काल बाद या ई. पू. 200 के आस-पास के होंगे। अक्षरों की लंबी खड़ी लकीरें, हमेशा गोला ग और सदा सीधी लकीरों वाला र, ये सब इसी अनुमान की पुष्टि करते हैं।
18. फलक II की अंतिम चार लिपियां दशरथ के अभिलेखों के अतिरिक्त, जो संभवतः ई. पू. तीसरी शती के अंत के ही हैं (दे. ऊपर 16, अ) । केवल कलिंग राज चेत खारवेल (स्त. XXI, XXII) और आंध्र की रानी नायनिका के नानाघाट गुफा के अभिलेख ही ऐसे हैं जिनकी तिथि स्थूल रूप में बतायी जा सकती है । खारवेल का अभिलेख ई. पू. 157 और 147 के बीच खोदा गया होगा, क्योंकि इस राजा का तेरहवाँ वर्ष 'मौर्यकाल' के 165 वें वर्ष में पड़ता है ।104 इससे नानाघाट के अभिलेख की भी तिथि निश्चित हो जाती है। खारवेल के अभिलेख की चौथी पंक्ति से पता चलता है कि अपने शासन के दूसरे वर्ष में उसने पश्चिम के राजा सातकणि की सहायता की थी। यह सातकणि संभवतः वही है जिसका उल्लेख पुराणों में प्रथम आंध्र राजा के रूप में आया है । इसकी एक मूत्ति नानाघाट की गुफा में मिली है जिस पर लेख खदा है। बड़ा वाला लेख सातकणि की विधवा ने तब खुदवाया था जब वह अपने कुमार की ओर से शासन कर रही थी। इसलिए इसकी तिथि ई. पू. 100 से बहुत बाद की नहीं हो सकती ।165 ___भरहुत के स्तूप के तोरण पर धनभूति ने 'शुंगों के राजकाल' में जो लेख खुदवाया था (स्त. XVIII) उसकी तिथि निर्धारित करने में भी प्राय: एकमात्र सहायक पुरालिपिक प्रमाण ही हैं । यही बात पभोस की गुफा के अभिलेखों (स्त. XIX) और मथुरा के सबसे पुराने दान लेखों के बारे में भी सत्य है। इन सब लेखों में (देखि. ऊपर 15, 5) शुंग शली की प्राचीन ब्राह्मी मिलती है। स्त. XVIII, XIX के अक्षर कुछ तो लहुरे मौर्य अक्षरों से मिलते हैं और
164. सिक्स्थ ओरियंटल कांग्रेस III, 2, 149; मिला. Ostreichiesche Monalsschr fur d. Or. 1884, 231 तथा आगे।
165. सिक्स्थ ओरियंटल कांग्रेस, III, 2, 146; भंडारकर, अर्लो हिस्ट्री आफ डेक्कन II, 34 का मत इससे भिन्न है। वे सातकणि को ई. पू. 40 और 16 ई. के बीच रखते हैं।
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