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ब्राह्मी की उत्पत्ति
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बौधायन II, 2, 2 में ब्राह्मणों को समुद्री यात्रा करने का निषेध है। इस निषेध का उल्लंघन करने वाले ब्राह्मणों को घोर प्रायश्चित का विधान है। किन्तु बौधायन (I, 2, 4) से पता चलता है कि 'औदीच्य' इस नियम का कड़ाई से पालन नहीं करते थे। औदीच्यों के अन्य अपराधों में ऊन का व्यापार और ऐसे जानवरों के विक्रय का उल्लेख है जिनके दोनों जबड़ों में दाँत होते हैं; जैसे, घोड़े और खच्चर । इससे पता चलता है कि औदीच्यों से तात्पर्य पश्चिमी
और उत्तर-पश्चिमी भारत के निवासियों से था । अतः निष्कर्ष यह हुआ कि समुद्री यात्रा से उनका तात्पर्य पश्चिमी एशिया की यात्रा से था। बौधायन (I. 18. 14) तथा उससे भी प्राचीन गौतम धर्मसूत्र X. 33 में समुद्री मार्ग से आयात की गई वस्तुओं पर राज-देय शुल्क का उल्लेख है । 7 मैंने धर्मसूत्रों और जातकों में उल्लिखित सामग्री के काल का जो अनुमान किया है, उससे ये उल्लेख ई. पू. ध्वीं-6ठों शती के होने चाहिए।६8 भुज्यु के जहाज टूटने की वैदिक कथा उससे भी प्राचीन समय की है। यह जहाज 'एक ऐसे समद्र में टूटा था जहाँ कोई सहायता न मिल सकती थी, पैरों या हाथों को भी कोई सहारा न मिल सकता था।" अश्विन कुमारों की “एक सौ पतवारों वाली नौका" पर टूटे जहाज के यात्रियों की रक्षा हुई थी । निश्चय ही यह घटना-स्थल हिंद महासागर में रहा होगा । इस कथा से अनुमान है कि प्राचीनतम वैदिक युग में भारतीय इन समुद्रों में जहाज चलाते थे। इसके अतिरिक्त अन्य कथाओं में भी; जैसे, सेमेटिक प्रलय और ब्राह्मण-ग्रंथों की महामत्स्य के द्वारा मनु की रक्षा की कथाओं में°0 इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिल जाते हैं कि हिंदू व्यापारियों ने पहले मेसोपोटामिया की भाषा सीखी होगी, जैसे आधुनिक काल में उनके वंशज अरबी और सुआहिली और अन्य अफीकी भाषाएं सीखते हैं। फिर वे वहाँ से लिपि ही नहीं बल्कि शायद दूसरी तकनीकी युक्तियाँ भी, जैसे वेदी-निर्माण के लिए ईंटें बनाना, साथ ले आये । यदि यह अनुमान सही है, जो एकदम निराधार नहीं प्रतीत होता, तो यह मानना पड़ेगा कि भारत के वणिकों ने अपने देश की वही सेवा की जो
87. सै. बु. ई. II, 228; XIV, 146, 200, 217; मिला. मनु III, 158; VIII, 157, 406 और डाहलमान, डैस महाभारत, पृ. 176 तथा आगे ।
88. बु, इं. स्ट. III, 2, 16 तथा आगे। 89. ऋ. वे. I, 116,5; मिला. ओल्डेनवर्ग, वेडिशे रेलिजन, 214 . 90. ओल्डेनवर्ग, वही 276..
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