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प्राचीन लिपि की उत्पत्ति का होना इस बात की ओर इशारा करता है कि जिस लिपि में इसका प्रचलन है उसमें ऐसे रूप बहुत समय से प्रचलित रहे होंगे। ___इतनी ही महत्त्वपूर्ण एक बात और भी है। वह यह कि जो प्रकार स्पष्ट ही या वास्तविक रूप में विकसित और घसीट वाले होते हैं वे अधिकांश में बाद के अभिलेखों में फिर प्रकट हो जाते हैं या स्थिर हो जाते हैं। नीचे की तालिका में पंक्ति अ में अशोक के आदेश-लेखों से वे चिह्न दिये गये हैं जो देखने में अत्यंत आधुनिक लगते हैं, पंक्ति ब में बाद के अभिलेखों से चुनकर वे ही अक्षर दिये गये हैं।
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इनमें चार चिह्न, सं० 2, 7, 10 और 21-जैसाकि बाद में दिखाया जायेगा%8..- बास्तविक रूप में पुरागत हैं किंतु शेष चिह्नों में कुछ तो द्वितीयक और कुछ तृतीयक घसीट वाले रूप हैं। आखिरी श्रेणी वाले रूपों में सं० 4, 8, 11, 15 और 19 विशेष रूप में दृष्टव्य हैं । पक्ति ब के अक्षरों में 9, 11, 12 और 19 के रूप अशोक के पोते दशरथ के नागार्जुनी गुफा-अभिलेखों में मिलते हैं, सं० 2, 6-8, 10, 13-16 और 21 खारवेल के हाथी-गुंफा अभिलेख और प्राचीनतम आंध्र अभिलेखों में, नासिक सं० 1 और नानाघाट के अभिलेखों, तथा मथुरा के पुराने अभिलेखों में मिलते हैं। ये सभी लेख ई० पू० 170 से 150 के बीच के हैं । सं० 1, 3, तथा 22 और बाद के हैं। ये पहली बार मथरा के कुशाणों के अभिलेखों और आंध्रों और आभीर के नासिक के अभिलेखों में मिलते हैं जिनका समय ईसा की पहली और दूसरी शताब्दी है ।
58. देखि. आगे 4 अ
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