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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र 23 (मिला. वही पृ. 68) में ये चिह्न दिये हैं। काबुल के सख्यांक ई. सी. बेली के निबंध, न्यूमिस्मैटिक क्रानिकल तीसरी सिरीज, II, 128 तथा आगे, मिलेंगे। 35. शब्दों और अक्षरों के माध्यम से संख्यांकों का द्योतन
___ अ. शब्द-संख्यांक खगोल, गणित और छंद-शास्त्र की अनेक पुस्तकों तथा अभिलेखों और हस्तलिखित पुस्तकों की तिथियों में संख्यांकों की अभिव्यक्ति वस्तुओं, प्राणियों या भावों के नामों से होती है। ये नाम प्रकृत्या वा शास्त्रवचनों के अनुसार संख्यांकों के द्योतक माने जाते हैं। इस प्रथा के प्राचीनतम चिह्न ए. वेबर ने कात्यायन और लाट्यायन के श्रौतसूत्रों में पाये हैं102। कुछ उदाहरण वैदिक ज्योतिष और बख्शाली हस्तलिखित ग्रंथ के गणित भाग में भी मिलते हैं। और अधिक उदाहरण पिंगल के छंदशास्त्र में हैं। 500 ई० के आसपास से हमें पहले वाराहमिहिर की पंचसिद्धान्तिका में ऐसी पद्धति के दर्शन होते हैं जो शनै, शनैः पूर्ण होती हुई शून्य
और 1 से 49 के बीच की सभी संख्याओं के लिए बन जाती है । इसके बाद के काल में संख्याओं के लिए प्रयुक्त शब्दों के किसी भी पर्याय का इस्तेमाल हो सकता था । कभी-कभी तो एक ही शब्द कई संख्याओं को प्रकट करता है । समस्त शब्दों को उनके प्रथम या द्वितीय अंशों से प्रकट कर सकते थे।
__ इस प्रथा की ईजाद निश्चय ही खगोल आदि की छंदोबद्ध पुस्तकों के लिए हुई थी। संख्याओं के लिए प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण शब्द निम्नलिखित हैं :403
0= (क) शून्य 404 (वरा., बेरू.); (ख) अंबर, आकाश आदि (वरा., बेरू., ब्राउ.), अनन्त (ब्राउ.)।
402. वे. इं. स्ट्रा. VIII, पृ. 166 तथा आगे। 403. संक्षिप्त शब्द रूप उन ग्रंथों के सूचक हैं जिनसे शब्द लिये गये हैं । ज्यो.= ज्योतिष, बेबर का संस्करण। पिंग- पिंगल, वेबर, Indische Studies. VIII, पृ. 167 तथा आगे। बख्शा.=बख्शाली की हस्तलिखित प्रति, हार्नली 130. बर्ने.बर्नेल के परिवर्द्धन, ए. सा. इं. पै. पृ. 77 तथा आगे । बेरू =बेरूनी का इंडिया, सचाऊ I, 178. ब्राड.=ब्राउन की सूची, जिस रूप में ब., ए. सा. इं. पै. 77 पर उद्धत है। वरा. बराहमिहिर की पञ्चसिद्धान्तिका, थिबो संस्करण ।
404. 'शून्य' का अर्थ 'गिनतारे की खाली जगह' हो सकता है या फिर यह 'शून्य विंदु' का संक्षिप्त रूप होगा (देखि. ऊपर 34, B).
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