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संख्यांक-लेखन
9वीं और बाद की शताब्दियों में दाशमिक अंकों का इस्तेमाल आम बात है। इस काल के अभिलेखों से जो नमूने लिये गये हैं।01 (फल. IX, B, स्त. IIIVIII, XIII) उनमें घसीट चिह्न मिलते हैं। 11वीं और 12वीं शती के चिह्नों में (मिला. स्त. VII, VIII, और XIII) पश्चिम, पूरब और दक्षिण में स्थानीय भेद मिलते हैं । किन्तु इनके सभी अंक या तो पुरानी प्रणाली के अक्षर-अंकों से निकले हैं या उन अक्षरों से जिनका उच्चारणगत वही मूल्य था । अंतिम टिप्पणी स्त. III, V, VI तथा आगे के 9 पर भी लागू है जो उत्तरकालीन अभिलेखों में प्रयुक्त ओम् के ओ के चिह्न के साथ अद्वैत है (मिला. इं. ऐ. VI, 194 तथा आगे सं 3-6) । __ हस्तलिखित ग्रंथों से लिये गये नमूनों में (फल. IX, B, स्त. IX-XII) बख्शाली के हस्तलिखित ग्रंथ के दाशमिक के अंकों में 4 और 9 के लिए प्राचीन अक्षर-अंक मिलते हैं। ___ तमिल के संख्यांक सामान्य संख्यांकों से बहुत भिन्न हैं। इनमें 10, 100 और 1000 के पुराने चिह्नों का प्रयोग होता है। बर्नेल ने ए. सा. इं. पै. फल.
401. फलक IX, B, स्तं. III-XIII (स्तं. I, II के लिए ऊपर देखि.); सभी हाथ से खींचकर । स्तं. III. कण्हेरी सं. 15, 43 A, B, के राष्ट्रकूट अभिलेखों की
प्रतिकृतियों से । स्तं. IV. तोरखेडे के राष्ट्रकूट ताम्रपट्ट की प्रतिलिपि से, ए. ई.III, 56 स्तं. V. 3 और 6 के अंक हडडाला ताम्रपट्ट की एक छाप से (इं. ऐ.
XII,190); 4, 7, 9, 0 के अंक असनी अभिलेख, इं. ऐ. XVI, 174 की प्रतिकृति से; 5 और 8 के अंक
मोर्बी ताम्रपट्ट, इं. ऐ. II, 257 की प्रतिकृति से। स्तं. VI, सावंतवाडी ताम्रपट्ट, इ.ऐ. XII, 266 की प्रतिकृति से ।। स्तं. VII. चालुक्य ताम्रपट्ट, इं.ऐ. XII, 202 की प्रतिकृति से । स्तं. VIII. 1, 3, 8 के अंक गया अभिलेख, इं. ऐ. X, 342 से; 5
क., म. ग. फल. 28, A से । स्तं. IX, X, हानली के बख्शाली के अंक । स्तं. XI, XII. बेंडेल के कै. कै. सं. बु. म. के टेबुल आफ न्यूमरल्स से । स्त. XIII. ब, ए. सा. इ. पै. फल. 23, 11वीं शती के तेलुगु-कन्नड़
अंक।
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