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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० भारतीय पुरालिपि-शास्त्र हिंदू इसके लिए सबसे पहले शून्य के साथ अंकों का प्रयोग करते थे। शून्य मूल में शून्य-बिंदु था, इसके संक्षिप्त नाम थे शून्य और बिंदु (दे. 35 ) । अधिक संभवतः यह प्रणाली हिंदू गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों की ईजाद है जिस में गिनतारे से सहायता ली गई थी (बर्नेल, ब्रेली)। हार्नली ने बख्शाली के हस्तलिखित ग्रंथों में रक्षित गणित-पुस्तक की प्राचीनता का संभवतः सही अनुमान किया है। यदि उसका यह अनुमान सही है:397 तो इसकी ईजाद ईसाई सन् के आसपास या उससे भी पहले हुई होगी। इस पुस्तक में सर्वत्र दाशमिक अंक-लेखन का प्रयोग हुआ है। चाहे जो हो, वराहमिहिर (Gठी शती) इससे परिचित था, क्योंकि वह 9 के लिए अंक शब्द का प्रयोग करता है (पञ्चसिद्धांतिका, 18, 33; मिला. आगे 35, अ) शून्य इस प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व है। सुबंधु की वासवदत्ता में इसका उल्लेख आया है। बाण (लग. 620 ई.) ने इस पुस्तक की प्रशंसा की है। सुबंधु ने अंधकारयुक्त आकाश में स्थित तारों को स्याही से काले किये हुए चमड़े पर चंद्रमारूपी खड़िया के टुकड़ों से बनाये शून्य-बिंदुओं की उपमा दी है ।398 सुबंधु का शून्य बख्शाली हस्तलिखित ग्रंथों की भाँति बिंदी ही था (फल. IX, B, स्त. IX)। पुरालेखों में दाशमिक अंक-लेखन प्रणाली के इस्तेमाल का सबसे प्राचीन प्रमाण चेदि संवत् 346 अर्थात् 595 ई. के गुर्जर अभिलेख में मिलता है ।399 इस लेख के चिह्न वही हैं (फल. IX, B, स्त. I) जो उस देश और काल के अंकों के प्रतीक हैं (मिला. फल. IX, A का वलभी का स्तंभ400) ऊपर पृष्ठ 160 पर उल्लिखित चिकाकोल पट्ट की तिथि में आये 2 पर भी यह बात लागू है। इस प्रलेख में हमें उत्तरकालीन गोला शून्य और पु से निकला एक घसीट चिह्न दहाई 8 के लिए मिलता है। 8वीं शती के एक अन्य अभिलेख शक संवत् 675=574 ई. के सम्मनगढ़ पट्टों में केवल अति रूपांतरित घसीट चिह्न ही मिलते हैं (फल. IX, B, स्त. II)। 396. मिला हानली का स्पष्टीकरण, सातवीं ओरियंटल कांफ्रेंस, आर्यन सेक्शन, 132; इं. ए. XVII, 35 397. इं. ऐ. XVII, 36 398. वासवदत्ता (सं. एफ. ई. हाल), पृ. 182 399. मिला. ए. ई. II, 19; देखि. फ्ली. गु. इं. (का. ई. ई. III), संa 209, टिप्पणी 1. 400. 6 के बारे में जो अंतर दिखता है, वह छाप के दोष के कारण है। 170 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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