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ब्राह्मी के अंक
ई. 594-95 तक तो इसी प्रणाली का प्रचलन था। बाद में यह दाशमिक प्रणाली के साथ भी इस्तेमाल में आती रही ।375 बावर की हस्तलिखित प्रति और काशगर के अन्य हस्तलिखित ग्रंथों में376 इसी प्रणाली का इस्तेमाल हुआ है। पश्चिम भारत के प्राचीन जैन हस्तलिखित ग्रंथों और नेपाल के बौद्ध ग्रंथों में 16वीं शती तक 377 इस प्रणाली का प्रयोग विशेषकर पृष्ठांकन में मिलता है । मलयालम हस्तलिखित ग्रंथों में तो अब भी यह प्रथा सुरक्षित है । 378
इस प्रणाली में 1 से 3 के लिए आड़ी लकीरें या उसके घसीट संयोग बनाये जाते हैं, 4 से 9, 10 से 90, 100 से और 1000 में प्रत्येक के लिए एक अलग चिह्न (सामान्यतया कोई मात्रिका या संयुक्ताक्षर) बनाया जाता है, मध्य की या बृहत्तर संख्याओं के लिए मूलभूत चिह्नों के समूह या संयुक्ताक्षर बनते हैं । ऐसी संख्याओं के लिए जिन में दहाइयां और इकाइयां या सैंकड़े, दहाइयां और और इकाइयां या इसी तरह और भी हों तो अल्पतर संख्याओं के लिए चिह्न
375. देखि. आगे 34 आ. अक्षर अंक में अंतिम अभिलेखीय तिथि संभवतः नेवार वर्ष 259 है जो बेंडेल, जर्नी इन नेपाल, 81, सं. 6 में है । मिला. फ्ली. गु. इं. (का. ई. ई. III) सं 209, टिप्प.।
376. देखि० हार्नली, वापर मनु स्क्रिप्ट; वी. त्सा. कुं, मो. VII, 260. बावरप्रति में कभी-कभी दहाई 3 मिलती है ।
377. मिला. भगवान लाल फल० इ. ऐ. VI, 42; कलहान, रिपोर्ट आन दि सर्च फार संस्कृत मनु स्क्रिप्ट्स, 1880-81, VIII तथा आगे; पीटरसन, फर्स्ट रिपोर्ट, 57 और थर्ड रिपोट, परि० I; ल्यूमन, शीलांक्स केमेन्टरी आन विशेषावश्यक (विशेषकर फल० 35); कॉवेल और एगलिंग, कै. से. बु. म. 52 (ज. रा. ए. सो, 1875); बेंडेल, कै. कै. बु. म. LII, और अंकों का फलक । बेंडेल के सं. 1049 और 1161 में तिथियों के लिए अक्षर-अंकों का भी प्रयोग हुआ है। नेपाल में अक्षर- अंक में अंतिम तिथि 1583 ई. की है (जो बेंडेल का अंकों के फलक में है)। अक्षर अंकों का केवल जैनः ताड़ पत्रों पर सन 1450 ई. तक मिलता है। किन्तु बलिन की कागज की हस्तलिखित पुस्तक. सं. 1709 (Weber Verzeichnis d. Sht. and Prak Hdschrft II, 1, 268; मिला DWA XXXVII, 250) में इसके कुछ चिह्न हैं । __378. बेंडेल, ज. रा. ए. सो. 1896; प्र. 789 तथा आगे ।
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