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खरोष्ठी के संख्यांक
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___100 से आगे की संख्याएं भी इसी सिद्धांत से प्रकट करते थे। जैस; 103 के लिए 100 (+) 3 या I सौ III। 200 का चिह्न बनाने में सौ का चिह्न बनाकर उसके दाएं दो खड़ी लकीरें बना देते थे। खरोष्ठी की सबसे ज्ञात बड़ी संख्या है II सौ XXXX XXX IV यानी 274367 । ___अशोक के शाहबाजगढ़ी और मनसेहरा के आदेशलेखों में जो कुछ थोड़े संख्यांकों के चिह्न मिले हैं (फल. I स्त. XIII) 368 उनसे विदित होता है कि ई. पू. की तीसरी शती में खरोष्ठी की संख्यांक लेखन-प्रणाली उत्तरकालीन प्रणाली से कम-से-कम एक महत्त्वपूर्ण बात में भिन्न थी। शाहबाजगढ़ी में 1, 2, 4, 5 के अंक हैं और मनसेहरा में 1, 2 और 5 के। इन दोनों में 4 के लिए झका क्रास नहीं है। 4 की संख्या दिखलाने के लिए चार समानांतर खडी लकीरें बना दी गई हैं, इसी प्रकार 5 के लिए पांच लकीरें हैं। इस बात का पता अभी तक नहीं चल पाया है, कि अन्य अंक कैसे लिखे जाते थे।
बर्नेल और दूसरे विद्वानों ने बहुत पहले ही कहा था369 कि खरोष्ठी के संख्यांक सेमेटिक से निकले हैं। इसके आगे अब यह भी कहा जा सकता है कि शायद वे अरामियनों से उधार लिये गये । क्रास की आकृति वाले 4 के चिह्न को छोड़कर इनका इस्तेमाल अरमैक अक्षरों के साथ-साथ शुरू हुआ। यूटिंग के प्राचीन अरमैक संख्यांक के फलक 370 के अनुसार अशोक के आदेशलेखों की भाँति 1 से 10 तक के चिह्न खड़ी लकीरों से बनाते थे। ये भारतीय प्रथा के प्रतिकूल तीन के समूहों में विभाजित हैं। खरोष्ठी 10 तीमा अभिरेख के १ के नजदीक है। और 20 का चिह्न क्षत्रप सिक्कों के " से मिलता-जुलता है जो पेपाइरस ब्लैकास371 में (ई. पू. पाँचवीं शती) और कुछ परिवर्तित रूप में
367. कनिघम का पाठ यही है, सेनार, वही, 17 में 84 पड़ता है। उसे 200 के अस्तित्व पर संदेह है (ज. ए. सो. बं. LVIII, फल. 10 की आटोटाइप प्रति में यह स्पष्ट है) । बार्थ इसे 284 पढ़ते हैं। 200 के साथ कम से कम एक अभिलेख है जो अभी अप्रकाशित है। ब्लाख ने सूचित किया है कि एक अभिलेख में 300 भी हैं ।
368. शाहबाजगढ़ी आदेशलेख सं. I-III, XIII की छाप के आधार पर बनाया गया है।
369. ब., ए. सा. इं.पै. 164; ज. ए. सो. ब. XXXII, 150। 370. Nabalische Inschriften पृ. 96 तथा आगे । 371. Gorpus Inscre. Sem P. Aram, 145 4 (यूटिंग ने बताया)।
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