________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४९
तमिल-लिपि
. घ के बाएं इकहरे या दुहरे भंग का विकास (फल. VIII, 14, XIV, XV) 1
5. च के सिरे का खुलना और इसके बाएं भाग का न्यून कोण में परिवर्तन (फल. VIII, 16, XIV, 15)। _____6. ड के दाएं किनारे एक और भंग का निकलना (फल. VIII, 22, XIV, XV)।
7. तमिल लिपि की प्रथा के अनुसार ण (फल. VIII, 24, XIV, XV) में एक अतिरिक्त फंदे का निकलना (दे. आगे, 32 अ )।
8. थ और घ के सिरों का पूरी तरह खुल जाना (फल. VIII, 26, 28, XIV, XV)।
9. प के बाएं भाग में एक भंग का विकास (फल. VIII, 30, XIV, XV)।
10. म के सिरे का बंद होना (फल. VIII, 34, XIV, XV)। ई. 775 के आसपास के गंग अभिलेखों में पहले ही ऐसा होने लगा था (फल. VIII, 46, XI)।
11. य के दाएं भाग के वृत्त या फंदे का लोप (फल. VIII, 35, XIV, Xv) इससे अक्षर पुरागत दीखने लगता है। ___12. व के सिरे का खुलना और बाएं भाग में एक नए भंग का निकलना (फल. VIII, 38, XIV, XV) ___ 13. आ, ए, ऐ, ओ की मात्राओं को मात्रिकाओं से एकदम अलग रखना और औ की मात्रा के दूसरे अद्धे के लिए एक पृथक् चिह्न बनाना जिसमें दो छोटे भंग और दाएं एक खड़ी रेखा होती है। ___ ध्यान देने की बात यह है कि स्त. XV की उत्तरकालीन लिपियों में स्त. XIV से कुछ अधिक पुरागत रूप हैं। निस्संदेह इसकी वजह यह है कि स्त. XIV की लिपि में राजकीय कार्यालयों के लिपिकों की नकल की गई है जब कि स्त. XV में स्मारक रूप है जो सार्वजनिक भवनों के अनुकूल हैं। ग्रंथ-लिपि के सभी अभिलेखों में स्टाइलस से लिखे अक्षरों की नकल है। 32. तमिल और वझेळुत्तु लिपियाँ : फलक VIII
अ. तमिल लिपि तमिल और इसका दक्षिणी और पश्चिमी घसीट विभेद, वट्टेळुत्तु या 'गोलाई
149
For Private and Personal Use Only